tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post2381482451166529835..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: अप्रतिम अज्ञेयआनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-1626915044914955692009-11-12T03:58:58.889-08:002009-11-12T03:58:58.889-08:00राजरिशीजी,
आभारी हूँ आपका ! आप तो पन्ने पीछे की तर...राजरिशीजी,<br />आभारी हूँ आपका ! आप तो पन्ने पीछे की तरफ पलटकर अज्ञेयजी के साथ अतीत में कदम-ब-कदम चल रहे हैं... अच्छा लगता है न सीढियों पर नीचे उतरना...? आपने कहा भी था--'लौटता हूँ खूब सारी फुरसतों के साथ.' यकीन हुआ आप लौट आये हैं बन्धु !<br />मेरे सिर पर गट्ठर बहुत बड़ा है. १९९५ से ही पिताजी की तीन पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार हैं. २७ जनवरी २०१०- पिताजी की जन्म-शती है, इसी अवसर पर उन्हें छपवाने की हसरत है--सुन्दर संस्मरण हैं उनमे ! कई और योजनायें लंबित हैं--पितामह की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक, छोटे चाचाजी (स्व. भालचन्द्र ओझा) की रचनाएं भी समेटनी हैं और प्रकाशित करनी हैं ! मेरा नंबर तो बहुत बाद में आएगा; लेकिन ब्लॉग का सहारा लेकर लिखना शुरू कर चुका हूँ और आप-जैसे मित्रों की सम्मति से मानने भी लगा हूँ कि बहुत फिजूल का लेखन नहीं कर रहा हूँ. बारह-पंद्रह संस्मरण हो जाएँ तो कभी उन्हें पुस्तकाकार छपवा भी लूँगा. इसके लिए किशोर भाई, अपूर्वजी और अर्जकेशजी का भी आग्रह मेरी गाँठ में है ! अब आपकी भी यही इच्छा है, तो ऐसा ही सही: लेकिन मानता हूँ, प्रभु-इच्छा सर्वोपरि है !<br />सप्रीत--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-73594383953137205032009-11-11T00:38:20.646-08:002009-11-11T00:38:20.646-08:00बड़े मनोयोग से पढ़ता जा रहा हूँ इस अप्रतिम संस्मरण क...बड़े मनोयोग से पढ़ता जा रहा हूँ इस अप्रतिम संस्मरण को किस्त-दर-किस्त! जैसा कि ऊपर किशोर जी ने लिखा है, ये सचमुच में किताब की शक्ल लेनी चाहिये ओझा जी।<br /><br />"कितने नाव में कितनी बार" आज से तीन साल पहले खरीदा था पटना पुस्तक-मेला में। यूं ही ख्याल उभरा था कि काश कि अज्ञेय जी का हस्तक्षार मिल पाता इस प्रति पर...! <br /><br />"विशफुल थिंकिंग????"गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-44562887631924576832009-11-01T13:17:12.626-08:002009-11-01T13:17:12.626-08:00संजय व्यासजी, किशोरजी, एम० सर्वतजी, वंदना दुबेजी, ...संजय व्यासजी, किशोरजी, एम० सर्वतजी, वंदना दुबेजी, ज्योतिजी,<br />विलंब से प्रत्युत्तर दे रहा हूँ, क्षमा चाहता हूँ ! आभार व्यक्त करने में इतना विलंब क्षम्य है न ?<br />हृदय से आभार सहित--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-72770931934491282982009-10-10T10:02:43.561-07:002009-10-10T10:02:43.561-07:00आनंद जी अज्ञेय जी के बारे में आपके ब्लॉग पर लिखा द...आनंद जी अज्ञेय जी के बारे में आपके ब्लॉग पर लिखा देख कब से उतावली हो रही थी पढने को मगर इसे इत्मीनान से पढना था क्योकि अज्ञेय जी ko मैं आमने -सामने मिली हूँ ,उनकी कविता उन्ही से सुनी है ,वो भी उनके जन्मदिन पर ,उस समय उनकी हिरोशिमा नामक रचना की काफी चर्चा रही और हमने सब मिलकर उनसे विनती की उसे सुनाने के लिए और वो हमारी इच्छा को पूरी भी किये ,मेरे साथियों ने आटोग्राफ भी लिया ,इस मामले में मैं धन्य हुई जो उन्हें देखने का मिलने व बाते करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ,आप के लेख को पढ़कर मन प्रफुल्लित हुआ .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-88169977229835975752009-10-09T04:15:08.728-07:002009-10-09T04:15:08.728-07:00बस आप लिखते चलें हम पढने के लिये आतुर बैठे हैं. &q...बस आप लिखते चलें हम पढने के लिये आतुर बैठे हैं. " कितनी नावों में कितनी बार" के उस हस्ताक्षरित पृष्ठ की तस्वीर क्यों नहीं लगाई आपने? ऐतिहासिक हो गई है अब वो.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-74996433733211439782009-10-08T20:45:05.413-07:002009-10-08T20:45:05.413-07:00ऐसी महान विभूति का सान्निध्य एवं स्नेह जिसे प्राप्...ऐसी महान विभूति का सान्निध्य एवं स्नेह जिसे प्राप्त हुआ, वह स्वयं कितना महान होगा, मैं केवल कल्पना कर सकता हूँ. कई दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आ सका हूँ. एक बैठक में चारों किस्तें पढ़ लीं और प्यास है कि बढ़ती जा रही है. आपका लेखन इंद्रजाल का सा काम करता है. स्नेह बनाये रखियेगा.सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-74416624295158678342009-10-08T19:54:17.840-07:002009-10-08T19:54:17.840-07:00मैं निरंतर पढ़ता आ रहा हूँ
सोचता हूँ कि आप अपने इन...मैं निरंतर पढ़ता आ रहा हूँ<br />सोचता हूँ कि आप अपने इन संस्मरणों को किसी प्रकाशक को दें तो ज्यादा हितकारी होगा. आपके इन मनीषियों के बारे में लिखे गए संसमरणों को मैंने पहले कभी नहीं सुना और पढ़ा था. जाने कितने ही पाठक होंगे जो इस तकनीक तक नहीं पहुँच पाते हैं. साधुवाद निशुल्क बांटने के लिए वैसे किसी पुस्तक भण्डार पर आपका नाम दीखता तो शुल्क देने को भी कोई कष्ट नहीं होगा.के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-54622846852381671062009-10-08T09:05:04.739-07:002009-10-08T09:05:04.739-07:00पूरे मनोयोग से पढ़ रहा हूँ.ये वृत्तान्त शायद अप्रका...पूरे मनोयोग से पढ़ रहा हूँ.ये वृत्तान्त शायद अप्रकाशित हैं.आपका आभार ये अवसर दिलाने का.sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.com