tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post3976129950635679108..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: यादों के आइने में कवि बच्चन...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-81406666613695055442012-12-16T02:31:41.078-08:002012-12-16T02:31:41.078-08:00:):)देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-87558559861701375532012-12-12T04:09:34.750-08:002012-12-12T04:09:34.750-08:00आशीषजी, सदाजी, बहन इस्मत,
संस्मरण लंबा जाएगा. आप स...आशीषजी, सदाजी, बहन इस्मत,<br />संस्मरण लंबा जाएगा. आप सभी पढ़ते जाने का हौसला बनाये रखें ! आभारी हूँ !<br />वंदनाजी, 'क्रमशः' को तो झेलना ही पडेगा. बूढी होती आँखें अब अधिक अंखफोड़वा कर्म करने की इजाज़त नहीं देतीं ! आभार !!आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-28741501281734833422012-12-12T03:59:55.537-08:002012-12-12T03:59:55.537-08:00हिमांशुजी,
आपकी टिपण्णी के लिए आभारी हूँ !
प्रश्न ...हिमांशुजी,<br />आपकी टिपण्णी के लिए आभारी हूँ !<br />प्रश्न के उत्तर में 'हाँ' और 'ना' दोनों कहूँ तो ? बहुत पहले ओंकार शरद और डॉ. अजित कुमार के सम्पादन में राजपाल प्रकाशन, दिल्ली से एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी--'बच्चन निकट से.' पिताजी का संस्मरण शती के साथी : बच्चन' उसमें 'एक अन्तरंग झांकी' के नाम से छापा था, संभवतः बच्चनजी की षष्ठिपूर्ति पर. कालान्तर में पिताजी ने इसमें कई प्रसंग और जोड़ के उसे नया नाम दिया और अपनी पुस्तक 'पहचानी पगचाप' में संकलित किया. उनके जीवनकाल में यह पुस्तक छाप न सकी, इसका मुझे गहरा क्षोभ है. शीघ्र ही मैं इसे छापूंगा.<br />सप्रीत--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-63239376311332524402012-12-06T04:16:27.635-08:002012-12-06T04:16:27.635-08:00हम पढ रहे हैं चुपचाप...
कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, ज...हम पढ रहे हैं चुपचाप...<br />कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जिन्हें हम बिना किसी व्यवधान के पढना चाहते हैं...लेकिन क्रमश: जैसा शब्द व्यवधान डाल ही देता है :(वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-44308636587402995502012-12-06T01:40:55.207-08:002012-12-06T01:40:55.207-08:00यादों के आइने में कवि बच्चन जी और बाल मन की जिज्ञ...यादों के आइने में कवि बच्चन जी और बाल मन की जिज्ञासाएं सहज़ ही आकर्षित करती हैं ... अनुपम प्रस्तुति<br /><br />आभारसदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-43655077305682951142012-12-06T00:38:45.575-08:002012-12-06T00:38:45.575-08:00बिना रुके पढ़ते गए , अब इंतजार अगली कड़ी काबिना रुके पढ़ते गए , अब इंतजार अगली कड़ी काashishhttps://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-69352956943391516302012-12-05T19:29:53.571-08:002012-12-05T19:29:53.571-08:00आप का लेखन एक फ़िल्म की तरह चित्रों को साकार कर के...आप का लेखन एक फ़िल्म की तरह चित्रों को साकार कर के आँखों के समक्ष ला देता है और उस पर स्व. मुक्त जी और बच्चन जी के शब्दों का समावेश चार चांद लगा रहा है इस संस्मरण मेंइस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-39613984626153430542012-12-05T18:16:32.267-08:002012-12-05T18:16:32.267-08:00मुग्ध भाव से पढ़ गया दोनों प्रविष्टियाँ!
"शती...मुग्ध भाव से पढ़ गया दोनों प्रविष्टियाँ!<br />"शती के साथी : बच्चन" नामक संस्मरण क्या पुस्तक रूप में है? यदि हाँ..तो कहाँ से प्रकाशित है? <br />Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.com