tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post5597151499453880268..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: वृक्ष बोला...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-40408073085604322982012-08-01T00:26:29.734-07:002012-08-01T00:26:29.734-07:00इसीलिए तो दूब से कहते हुए वृक्ष सब को यह सन्देश और...इसीलिए तो दूब से कहते हुए वृक्ष सब को यह सन्देश और प्रेरणा देता है वंदनाजी ! आभार !!<br />--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-54935985730414933162012-07-31T06:09:49.230-07:002012-07-31T06:09:49.230-07:00उसने कोमल टहनियों को ऊपर उठाया;
जैसे अपने हाथ उठाक...उसने कोमल टहनियों को ऊपर उठाया;<br />जैसे अपने हाथ उठाकर <br />सिरजनहार को धन्यवाद दे रहा हो,<br />कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा हो<br />और भार-मुक्त करने के लिए<br />आभार व्यक्त कर रहा हो !<br />देने के बाद स्वयं को भारमुक्त महसूस करने का भाव केवल प्रकृति में ही पाया जाता है, वो चाहे धरती हो या वृक्ष. इंसान तो मात्र लेने के लिए बना है... वृक्ष सी दानशीलता क्या कभी मनुष्य पा सकता है???वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-19265860606744610052012-07-30T23:49:29.302-07:002012-07-30T23:49:29.302-07:00बहुत सुंदर कविता !!
ख़ूबसूरत मंज़रकशी के साथ जो सं...बहुत सुंदर कविता !!<br />ख़ूबसूरत मंज़रकशी के साथ जो संदेश है कमाल का है<br /><br />मैंने पूछा--'हे वृक्ष !<br />अपना सब कुछ देकर<br />तुम खुश कैसे होते हो ?<br />क्या अन्दर-अन्दर रोते हो ?<br />ये एक पंक्ति क्या अंदर अंदर रोते हो ??<br />इस ने क्य कुछ नहीं कह दिया बहुत ख़ूब !!इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.com