tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post8827955478095129873..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: ।। दरबे में भेड़िया ।।आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-771723534282954992014-08-23T08:17:57.124-07:002014-08-23T08:17:57.124-07:00चलो, एक तुम्हारा मंतव्य तो आया, मैंने तो सोचा था, ...चलो, एक तुम्हारा मंतव्य तो आया, मैंने तो सोचा था, आज भी सूना रहेगा पटल...! मेरा आभार चाहोगी क्या...?आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-31234826472996476872014-08-23T06:15:18.754-07:002014-08-23T06:15:18.754-07:00हम चाहें तो
भेडिये के नख का पैनापन
कुंद कर सकते है...हम चाहें तो<br />भेडिये के नख का पैनापन<br />कुंद कर सकते हैं<br />तोड़ सकते हैं उसके नुकीले दांत<br />निष्प्रभ कर सकते हैं<br />उसकी चमकीली आँखें<br />और उसके गले में डाल सकते हैं<br />आदमीयत का मज़बूत पट्टा,<br />दुम दबाकर दरबे में ही<br />रहने को कर सकते हैं उसे बाध्य..!<br />आज हमें अपने मनुष्य होने के दावे को<br />सिद्ध करने की मजबूरी है...!<br />कमाल की कविता है. आज के परिवेश को रेखांकित करती. रोज़ की घटनाएं निश्चित रूप से साबित कर रहीं इंसान में भेड़िये का होना.. आभार. प्रणाम सहित.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.com