tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post2051963461639682359..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: विनय का विस्फोट...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-85658607399326087812010-01-01T08:10:34.069-08:002010-01-01T08:10:34.069-08:00आप सबों का बहुत-बहुत आभार !
कोच्ची, मुन्नार, एलेपी...आप सबों का बहुत-बहुत आभार !<br />कोच्ची, मुन्नार, एलेपी (दक्षिण) की यात्रा पर था... आज ही लौटा हूँ; वहां के रोमांचक और मनोरम दृश्यों पर फिर कभी लिखूंगा. अभी तो ब्लॉग से अपनी अनुपस्थिति के कारण व्यक्त करने के लिए यह सूचना दे रहा हूँ; खास तौर से हरकीरतजी के लिए. और यह भी कि यह पीड़ा पुरानी है, जिसकी चुभन आज व्यक्त हुई है.<br />किशोरजी, यौवन के क्षणांश तक दृष्टि ले जाने का शुक्रिया !<br />राजरिशीजी, बिम्ब की पकड़ के लिए साधुवाद देने का शुक्रिया !!<br />अपूर्वजी, आपकी अपूर्व टिपण्णी से मुग्ध हूँ !!!<br />पी सिंहजी, रचना दीक्षितजी, अभिषेक ओझाजी, अनिलकान्तजी, वंदनाजी और वंदना दुबेजी, इस्मत और वाणी गीतजी, सुमनजी, प्रमुदित हुआ आपके मंतव्यों से !!!<br />ज्योतिजी, आपका आभार किस तरह व्यक्त करूँ ? लगता है, आना पड़ेगा सतना तक; आ जाऊं क्या ?<br />सबों को नववर्ष की मंगल-कामनाएं देता हूँ, शुभ कामनाएं भी साथ ही-- आनंद.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-10999030836991229262009-12-30T07:20:24.610-08:002009-12-30T07:20:24.610-08:00काल के फंदे जकड़ते जा रहे हैं
और कोई पास बैठा
क्षी...काल के फंदे जकड़ते जा रहे हैं<br />और कोई पास बैठा<br />क्षीण-से स्वर में पुकारे जा रहा है,<br />सड़कें गूंगी व्यथा दुहरा रही हैं;<br />खाली-खुली हथेलियों का दर्द फिर भी<br />कितनों को छीलता है ?<br /><br />आनंद जी किस बंद की तारीफ करूँ और किसकी न करूँ .....पहले तो ये बताएं चले कहाँ गए थे इतने दिन .....और ये इतना दर्द क्यूँ .....???हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-1762282225302191782009-12-23T05:42:40.539-08:002009-12-23T05:42:40.539-08:00गज़ब!!!
एक शांत और गंभीर से दिखने वाले समुद्र के हृ...गज़ब!!!<br />एक शांत और गंभीर से दिखने वाले समुद्र के हृदय मे कितना उद्वेलन छुपा है..कितनी व्याकुल तरंगें..डूब-डूब कर फिर-फिर उभरने को आतुर..<br />अपनी मनोस्थिति से असंतुष्ट..<br /><br />और अन्तर की मनोरम घाटियों में<br />एक स्वर ही गूंजता है<br />आस्था के अर्थ का विस्फोट लेकर <br /><br />तो अपने समय की विद्रूपताओं से व्यथित..<br /><br />विश्वविद्यालय की तीन टांगवाली कुर्सियां--<br />'बंदी' के आक्रोश-भरे नारे उभर आते हैं,<br /><br />मगर फिर अपने सीमाबोध से जनित कुढ़न..<br /><br />सिगरेट के धुंए की तरह अस्तित्व सुलग जाता है !<br />और अंततः अपनी ’टू्टी उंगलियों’ के सीमाबद्धता के बावजूद आक्रोश को ’चाकू, छुरा, पिस्तौल’ की बजाय ’कलम’ की जबान देने की सकारात्मकता..क्या कुछ नही समिट आया है इन चंद पंक्तियों मे..<br />विशेषकर इन पंक्तियों के परस्पर संबंध से प्रभावित हुआ जाता हूँ<br />लो, समय का एक सूरज डूबता है <br />और<br />यवनिका अब गिर रही है <br />फिर<br />काल के फंदे जकड़ते जा रहे हैं<br /><br />और इस पंक्ति के सत्य पर मुग्ध हुआ जाता हूँ...<br /><br />ज़िन्दगी हडतालों के दोराहे पर<br />खड़ी होकर उसांसें लेती है<br /><br />..सच कहूँ तो ब्लॉग पर ऐसी रचनाएं देख कर आश्चर्य भी होता है और हर्ष भी..हिंदी कविता ब्लॉगिंग को एक नया स्तर मिलता है ऐसी कविताओं से..<br />आभारअपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-14038612084711602362009-12-22T22:56:01.384-08:002009-12-22T22:56:01.384-08:00बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभारबहुत खूब अच्छी अच्छी रचना<br />बहुत बहुत आभारPushpendra Singh "Pushp"https://www.blogger.com/profile/14685130265985651633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-33398948149284576212009-12-22T03:47:17.469-08:002009-12-22T03:47:17.469-08:00सच मेरे मित्र !
सारे अहसास गूंगे हो जाते हैं
जब मै...सच मेरे मित्र !<br />सारे अहसास गूंगे हो जाते हैं<br />जब मैं टूटती उँगलियों से<br />कलम को जबान देना चाहता हूँ !!<br />बहुत कुछ कह गए आप कलम की जुबान से बहुत आक्रोश पर साथ ही सच भीरचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-56137116883292045402009-12-22T03:42:32.592-08:002009-12-22T03:42:32.592-08:00bahut hi gahan.bahut hi gahan.vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-10837188251462358152009-12-22T00:44:03.192-08:002009-12-22T00:44:03.192-08:00एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली. आनंद आ गयाएक अच्छी कविता पढ़ने को मिली. आनंद आ गयाअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-51231121835239797702009-12-22T00:37:22.052-08:002009-12-22T00:37:22.052-08:00खाली-खुली हथेलियों का दर्द फिर भी
कितनों को छीलता ...खाली-खुली हथेलियों का दर्द फिर भी<br />कितनों को छीलता है ?<br />कमाल के स्वर-तेवर हैं इस कविता में. अपनी तकलीफ़ को दूसरे तक पहुंचाने में हमेशा की तरह सक्षम.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-20098796877705733372009-12-21T23:02:10.451-08:002009-12-21T23:02:10.451-08:00"विश्वविद्यालय की तीन टांगवाली कुर्सियां"..."विश्वविद्यालय की तीन टांगवाली कुर्सियां" का बिम्ब अचंभित कर गया गुरुवर।<br /><br />बड़े दिनों नाद मुक्त-छंद की एल कविता देखने को मिली जिसमें ग़ज़ब के प्रवाह के साथ अनूठा तेवर भी हो। सच कहता है कवि कि "विषमताओं के भयंकर काल के सम्मुख/प्रणय की मत करो चर्चा"।<br /><br />..और इस मौन मूक विश्व के लिये कलम ही तो शेष रह गयी है जुबान देने के लिये।<br /><br />एक अच्छी और सशक्त कविता के बधाई स्वीकारें, सर!गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-86822610217188036452009-12-21T22:59:26.686-08:002009-12-21T22:59:26.686-08:00गूंगे हो रहे अहसासों को खूब आवाज दी है आपने.गूंगे हो रहे अहसासों को खूब आवाज दी है आपने.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-70950308318271016902009-12-21T19:29:06.812-08:002009-12-21T19:29:06.812-08:00उफनते गरजते मन का एक हिस्सा
एक कविता जैसे यौवन के ...उफनते गरजते मन का एक हिस्सा<br />एक कविता जैसे यौवन के क्षणांश का चित्रण. सुंदरके सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-52462060394992202322009-12-21T19:09:03.314-08:002009-12-21T19:09:03.314-08:00कहाँ रहे आपके एहसास गूंगे ...कांपती अँगुलियों ने ...कहाँ रहे आपके एहसास गूंगे ...कांपती अँगुलियों ने तो कह ही दी है एहसासों की दास्तान ...<br />विसंगतियां और विडंबना है तो ...<br />चिंतन का सूरज डूबता है तो ...<br />फिर एक नया दिन नयी आस लेकर भी तो आता है ...जब तक आस है ...उम्मीद है ....जीवन सुन्दरतम है ....!!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-74065353318396291992009-12-21T18:43:40.232-08:002009-12-21T18:43:40.232-08:00anand ji badhai ho ,antim do panktiyon men sab kuc...anand ji badhai ho ,antim do panktiyon men sab kuchh simat gaya shabdon ka itna badhiya istemal bahut kam dekhne ko milta haiइस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-74805888614367747512009-12-21T17:49:10.226-08:002009-12-21T17:49:10.226-08:00niceniceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-62405628038911340282009-12-21T13:37:56.368-08:002009-12-21T13:37:56.368-08:00आज चिंतन के क्षणों में
डूबता है एक सूरज
व्यक्ति का...आज चिंतन के क्षणों में<br />डूबता है एक सूरज<br />व्यक्ति का विक्षोभ लेकर<br />और अन्तर की मनोरम घाटियों में<br />एक स्वर ही गूंजता है<br />आस्था के अर्थ का विस्फोट लेकर ;<br />किंतु जीवन थम गया है--<br />आज चिंतन के क्षणों में<br />डूबता है एक सूरज<br />व्यक्ति का विक्षोभ लेकर<br />और अन्तर की मनोरम घाटियों में<br />एक स्वर ही गूंजता है<br />आस्था के अर्थ का विस्फोट लेकर ;<br />किंतु जीवन थम गया है--<br />अवरोध ही अवरोध अब तो शेष है <br />aapko ko kuchh kahne ke kabil hum kahan .failte huye andhere ki tasvir ubhar aai ,saath hi gahri chinta me lapet gayi ,kitni gahri baat kah gaye aap 'aaj' par ,<br />आस्था के अर्थ का विस्फोट लेकर ;<br />किंतु जीवन थम गया है--<br />अवरोध ही अवरोध अब तो शेष है .iske aage kya kahe ,saari rekhaye chhap gayiज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.com