tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post310914088147753847..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: सिमटती दीवारों के बीच से...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-33405516623747703622010-03-21T10:27:10.623-07:002010-03-21T10:27:10.623-07:00जी समझ गया..हा कान बहरे थे..अभी अभी मन्दिर के घन्ट...जी समझ गया..हा कान बहरे थे..अभी अभी मन्दिर के घन्टे भी सुने मैने..<br /><br />आपने जो ज़िन्दगी की ताज़गी दिखायी है, वो मेरे भेजे मे घुस आयी है..<br /><br />बहुत ही प्यारे शब्द...और उन शब्दो से रचा गया ये कविता रूपी इन्सान..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-43877301098150243362010-03-13T12:06:40.979-08:002010-03-13T12:06:40.979-08:00बहुत सुन्दर आप तो शब्दों के जादूगर हैं ही लेकिन ये...बहुत सुन्दर आप तो शब्दों के जादूगर हैं ही लेकिन ये विचार ,ये मश्वरे आपके मन की पवित्रता का दर्शन कराते हैं<br />बधाई हो .संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-23618286168999967932010-02-26T19:53:40.802-08:002010-02-26T19:53:40.802-08:00अदृश्य गूंजती आवाजों से मत लड़ो,
बुद्धि का वृक्ष ह...अदृश्य गूंजती आवाजों से मत लड़ो,<br />बुद्धि का वृक्ष होने का दंभ मत पालो !<br />मैं तुम्हें कोई आश्वासन नहीं दूंगा<br />मंदिरों की शंख-ध्वनि सुनने को<br />तुम्हारे कान बहरे हैं शायद !<br /><br />सच और सच के सिवा और कुछ नहीं.........<br />अनुभवों सागर मचलता दिख रहा है इस कविता की गगरी में.<br /><br />हार्दिक आभार.<br /><br />होली पर आपको हमारी हार्दिक बधाइयाँ.<br /><br />चन्द्र मोहन गुप्तMumukshh Ki Rachanainhttps://www.blogger.com/profile/11100744427595711291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-17863366842182929312010-02-25T06:27:07.205-08:002010-02-25T06:27:07.205-08:00उदास मन को नई उर्जा देने में समर्थ है यह कविता.उदास मन को नई उर्जा देने में समर्थ है यह कविता.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-62303028048122699152010-02-23T10:11:48.470-08:002010-02-23T10:11:48.470-08:00ब्लॉग जगत से कुछ समय बाहर रहने की वजह से आपकी लेखन...ब्लॉग जगत से कुछ समय बाहर रहने की वजह से आपकी लेखनी का रसास्वादन नही कर सका..मगर इस कविता को पढ़ कर क्षोभ दूर हो गया..कितना असहिष्णु, असहज और एकाकी होती जा रहे हैं हम एक समाज के तौर पर..ग्लोबल होते जा रहे इस दौर मे?..यथार्थ की कटुता को शब्द देती इस कविता का संदेश हमारे समय की जरूरत है..जो सिर्फ़ एक दोस्त की जबानी ही समझी जा सकती है..<br /><br />मेरे अजीज़ दोस्त !<br />मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--<br />कड़वाहटों को अपने भीतर<br />मत पनपने दो !<br />सिमटती दीवारों को खुद तक<br />मत सिमटने दो !!<br /><br />वैसे पूरी कविता मे मुझे हमारी ही आंतरिक विडम्बना का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है..जो हम अपने ही हाथों से चक्र्व्यूह रच कर खुद ही फंस जाते हैं..<br />बार-बार पढ़े जाने की मांग करती है कविता..और अभी तो पिछली प्रविष्टियाँ भी पढ़े जाने को बाकी हैं..अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-47632117551055285912010-02-22T08:31:21.981-08:002010-02-22T08:31:21.981-08:00मेरे अजीज़ दोस्त !
मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--
कड...मेरे अजीज़ दोस्त !<br />मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--<br />कड़वाहटों को अपने भीतर<br />मत पनपने दो !<br /><br />कविता काम करे,जैसा कि कवि कहता है ...कविता से गुजारिश है <br />-ओमओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-31752257424851967702010-02-21T15:01:12.584-08:002010-02-21T15:01:12.584-08:00बेमिसाल रचनाबेमिसाल रचनाM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-85131771259496794022010-02-21T12:29:52.587-08:002010-02-21T12:29:52.587-08:00मेरे अजीज़ दोस्त !
मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--
कड...मेरे अजीज़ दोस्त !<br />मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--<br />कड़वाहटों को अपने भीतर<br />मत पनपने दो !<br />सिमटती दीवारों को खुद तक<br />मत सिमटने दो !!<br />hridyasparshi ,aapko padhna hamara saubhagya hai ,nayi disha ka gyaan jo prapt hota hai ,kitni sundar baate kahi hai aapne in panktiyon me aaj ke daur me ye bahut aham hai .shayad jaroort bhi .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-7218833909193145962010-02-21T11:20:12.555-08:002010-02-21T11:20:12.555-08:00इतने सुंदर शब्दों के ताने बाने से बाहर निकल पाई तब...इतने सुंदर शब्दों के ताने बाने से बाहर निकल पाई तब जाकर कहीन अर्थ की ओर ध्यान गया<br /><br />मेरे अजीज़ दोस्त !<br />मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--<br />कड़वाहटों को अपने भीतर<br />मत पनपने दो !<br />सिमटती दीवारों को खुद तक<br />मत सिमटने दो !!<br /><br />बहुत सुन्दर आप तो शब्दों के जादूगर हैं ही लेकिन ये विचार ,ये मश्वरे आपके मन की पवित्रता का दर्शन कराते हैं <br />बधाई हो .इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-75746445669437690342010-02-21T05:33:41.041-08:002010-02-21T05:33:41.041-08:00लेकिन एक नज़र मेरी निश्चलता को देखो
मैं तो मुर्दा ...लेकिन एक नज़र मेरी निश्चलता को देखो<br />मैं तो मुर्दा हूँ,<br />मुझे बेहोश हो जाने का भी हक नहीं है !<br />आम इन्सान की कडवाहट और व्यवस्था से उपजा आक्रोश बहुत तीव्रता से उभरा है. बधाई.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-29246414071856545832010-02-20T20:26:15.640-08:002010-02-20T20:26:15.640-08:00बेबस इंसान जो अपनी कड़वाहटों को भी दबा लेता है..और...बेबस इंसान जो अपनी कड़वाहटों को भी दबा लेता है..और जो सही भी है..कविता में इतना कुछ समेत दिया गया है की और कुछ कहते नहीं बनता..डिम्पल मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-47781357560250238522010-02-20T08:17:35.279-08:002010-02-20T08:17:35.279-08:00मेरे अजीज़ दोस्त !
मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--
कड...मेरे अजीज़ दोस्त !<br />मैं तुम्हें खबरदार करता हूँ--<br />कड़वाहटों को अपने भीतर<br />मत पनपने दो !<br />सिमटती दीवारों को खुद तक<br />मत सिमटने दो !!<br /><br /><br />प्यार का सन्देश देती उत्कृष्ट रचना!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-77859857979453279612010-02-20T07:45:32.058-08:002010-02-20T07:45:32.058-08:00हॉं ,
सिमटती दीवारों को खुद तक
मत सिमटने दो !!
व...हॉं , <br />सिमटती दीवारों को खुद तक<br />मत सिमटने दो !!<br /><br />वरना रह सिर्फ दीवारें ही रह जायेंगी और हम उन दीवारों के अंदर खो जायेंगे ।अर्कजेशhttp://www.arkjesh.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-90646924050810253602010-02-20T07:15:46.055-08:002010-02-20T07:15:46.055-08:00जब मैं आपको पढ़ता हूँ तो कहीं खो सा जाता हूँ...और ...जब मैं आपको पढ़ता हूँ तो कहीं खो सा जाता हूँ...और जब अंत पर पहुँचता हूँ तो एहसास होता है कि मैने एक बेहतरीन रचना कब पढ़ डाली....फिर से एक बार पढ़ता हूँअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-77393873992767340682010-02-20T04:21:14.912-08:002010-02-20T04:21:14.912-08:00आपकी हर एक रचना तारिफे काबिल है !आपकी हर एक रचना तारिफे काबिल है !संध्या आर्यhttps://www.blogger.com/profile/12304171842187862606noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-53976783487825047122010-02-20T04:07:34.213-08:002010-02-20T04:07:34.213-08:00kin shabdon mein tarif karoon.kin shabdon mein tarif karoon.vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.com