tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post4049734986164027168..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: जब आचार्य द्विवेदी रो पड़े.... : 'मुक्त'आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-31720016061421903742010-02-03T18:18:33.096-08:002010-02-03T18:18:33.096-08:00आभार आपका इस संस्मरण को पढ़वाने का। अद्भुत!आभार आपका इस संस्मरण को पढ़वाने का। अद्भुत!अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-2014852150382216622010-01-31T07:37:14.772-08:002010-01-31T07:37:14.772-08:00मैं नहीं जानता कि मैं अपने जीवन में ऐसा कुछ कर सका...मैं नहीं जानता कि मैं अपने जीवन में ऐसा कुछ कर सका हूँ, जो प्रशंसा के योग्य हो। मैंने जो कुछ किया, वह कर्तव्य समझकर किया। फिर भी यदि आप उसे उचित और उपयोगी मानते हैं, तो मेरी प्रशंसा मत कीजिये, उससे आगे कुछ करने का प्रयास कीजिये। वही मेरी सच्ची प्रशंसा होगी। उसीसे मुझे संतोष होगा।" <br /><br />ek ek shabad sach<br /><br /><br />कविता साहित्य की बहुत बड़ी शक्ति है। उसे मनोविलास या व्योम-विहार की वस्तु मत बनाइये<br /><br />bahut sateek baat<br /><br />aapne itna achcha sansmaran post kiya<br />abhaarश्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-25742089234489372792010-01-31T05:42:23.212-08:002010-01-31T05:42:23.212-08:00विलंब से आ रहा हूं..और अभी बैठ कर दोनों किश्तें सा...विलंब से आ रहा हूं..और अभी बैठ कर दोनों किश्तें साथ पढ़ ली है। पूरे हफ़्ते बाबूजी को समर्पित...मेरी भी मौन श्रंधाजलि!<br /><br />मैं सोच ही रहा था कि अज्ञेय और बेनीपुरी जी के पश्चात आनंदवर्द्धन जी अब किस महापुरुष का संस्मरण लगायेंगे...मुक्त जी जैसे पिता साथ बीता बचपन...आह!गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-86981200784310545292010-01-31T05:33:43.220-08:002010-01-31T05:33:43.220-08:00बाबू जी के संस्मरण पर टिप्पणी करने की धृष्टता नहीं...बाबू जी के संस्मरण पर टिप्पणी करने की धृष्टता नहीं कर सकती मैं. अनमोल संस्मरण.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-13214751947551427332010-01-31T03:40:34.480-08:002010-01-31T03:40:34.480-08:00बाबू जी के ये संस्मरण हमारी धरोहर हैं. संस्मरणों क...बाबू जी के ये संस्मरण हमारी धरोहर हैं. संस्मरणों के माध्यम से आज मैं उन्हें पुन: अपने बीच महसूस कर पा रहा हूं. आभार.<br /> उमेश दुबेumeshhttps://www.blogger.com/profile/02481410989063574047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-49749081766552042802010-01-31T03:37:19.198-08:002010-01-31T03:37:19.198-08:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.umeshhttps://www.blogger.com/profile/02481410989063574047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-69287255027930813272010-01-30T09:54:23.745-08:002010-01-30T09:54:23.745-08:00फ़लदार वृक्ष जितने ज्यादा फ़लित होते हैं..उतनी ही वि...फ़लदार वृक्ष जितने ज्यादा फ़लित होते हैं..उतनी ही विनम्रता से झुकते जाते हैं..आज के युग ’एट्टीट्यूड’ और ’आइ एम द बेस्ट’ के युग मे जब विनम्र और विनीत होना कमजोरी समझा जाता है..इस तथ्य को समझना बहुत मुश्किल होता जाता है..किंतु सुखद है कि साहित्य के शलाकापुरुषों के व्यक्तित्त्व के विविध पहलुओं को सामने लाने वाली आपकी इन पोस्ट्स की श्रंखला के द्वारा इन लोगों की महानता के रहस्य सामने आते हैं....<br />कविता के बारे मे कहे गये द्विवेदी जी के विचार मनन योग्य हैं..<br />आभारअपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-65659109598799385492010-01-29T17:01:11.418-08:002010-01-29T17:01:11.418-08:00इस संस्मरण को प्रकाशित करने के लिए आभार!इस संस्मरण को प्रकाशित करने के लिए आभार!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-60770242108713790302010-01-29T10:33:32.032-08:002010-01-29T10:33:32.032-08:00इस लेख के साथ ही पिछले दो लेख भी पढे । आनंदित और ल...इस लेख के साथ ही पिछले दो लेख भी पढे । आनंदित और लाभान्वित हो रहे हैं । पुण्य - स्मरण ।अर्कजेशhttp://www.arkjesh.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-77588328694828590512010-01-29T07:57:18.363-08:002010-01-29T07:57:18.363-08:00आह! कितना जरूरी संस्मरण है यह.
-"कविता साहित...आह! कितना जरूरी संस्मरण है यह.<br /><br />-"कविता साहित्य की बहुत बड़ी शक्ति है। उसे मनोविलास या व्योम-विहार की वस्तु मत बनाइये। अपनी कविता के द्वारा साहित्य को और समाज को कुछ ऐसा दीजिये, जो उसे समृद्ध बनाए।" उस साहित्यिक ऋषि ने उस समय अपने जीवन की अभिज्ञताओं और अनुभव के आधार पर युवा पीढ़ी को जो सीख दी थी, क्या आज के सन्दर्भ में वह उस समय की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी और आवश्यक नहीं है ?<br />...आज, इतने वर्षों के बाद ये वाक्य और भी उपयोगी और आवश्यक हो हमारे सामने यक्ष प्रश्न बन सामने खड़े हैं.<br />..इस पोस्ट के लिए हम आपके आभारी हैं.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com