tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post4906943172318796028..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: एक दीप प्रज्ज्वलित रखा है...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-36550257885208736382009-11-02T06:49:23.662-08:002009-11-02T06:49:23.662-08:00जो धूल उडाता चला जा रहा
काल-चक्र के उस रथ को !
ate...जो धूल उडाता चला जा रहा<br />काल-चक्र के उस रथ को !<br />ateet bhavishy douno ko sanjo le chalatee badee sunder rachana . bahut hee sunder rachana .Apanatvahttps://www.blogger.com/profile/07788229863280826201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-1808427549076165642009-10-28T03:34:02.221-07:002009-10-28T03:34:02.221-07:00आदरणीय आनन्दवर्धन जी,
जान रहा हूँ, शोक व्यर्थ है
...आदरणीय आनन्दवर्धन जी,<br /><br />जान रहा हूँ, शोक व्यर्थ है<br />फिर भी मन के सूने आँगन में,<br />छिपा मोह के महापाश को;<br />स्मृति-तर्पण-सा लगता मुझको--<br />द्वार तुम्हारे आकर फिर-से दस्तक देना,<br />जाने क्योंकर ठिठक रहे हैं<br />मेरे आकुल चरण चपल !<br />मन के झंझावातों से विह्वल, <br />क्या शेष रहेगा यह शतदल ?<br /><br />वाह! व्याकुल मनोदशा का कितना सटीक वर्णन जैसे शब्द उतरे आ रहे हों दिल में।<br /><br />आपसे बतिया के मुझे जो अपार सुख मिला, वह किसी भी माध्यम से अभिव्यक्त नही किया जा सकता है।<br /><br />सादर,<br /><br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-61441769715824894322009-10-27T10:16:32.776-07:002009-10-27T10:16:32.776-07:00कविता की शुरुआती पंक्तियां किसी आशंका सी भयभीत करत...कविता की शुरुआती पंक्तियां किसी आशंका सी भयभीत करती हैं..मगर कविता के वैचारिक प्रवाह मे आगे-आगे सोच को एक ठोस समझ और ज्ञान का आधार सा मिलता जाता है..बहुत सारे नीति और ज्ञान के अनमोल रत्न निकाल कर रख दिये आपने विचारों के इस समुद्र-मंथन मे..काफ़ी कुछ सीखने को मिलता रहता है..आपकी प्रतिभा और अनुभव से..<br />अंततः उस आशा-दीप की ज्योति को सलाम..उसके चिरंतनता की आशा के साथ..<br /><br />मन के जिस कोने में मैंने<br />एक दीप प्रज्ज्वलित रखा है<br />आलोक उसी से लेकर मैं तो<br />चलता हूँ जीवन-पथ पर;अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-77312157148695986102009-10-25T05:47:56.097-07:002009-10-25T05:47:56.097-07:00हकीरजी, ओम भाई, वंदनाजी, अनिलकान्तजी, ज्योतिजी,
आप...हकीरजी, ओम भाई, वंदनाजी, अनिलकान्तजी, ज्योतिजी,<br />आप सबों की टिपण्णी के लिए आभारी हूँ !<br />वंदना अवस्थी दुबेजी और किशोर जी,<br />ऋतज को आशीष देते हुए आपकी टिपण्णी पर मैंने एक प्रति-टिपण्णी लिखी है, कृपया उसे पढने का कष्ट करें और नहले पे दहला दें, तो जानूं !<br />सप्रीत--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-40856923907795772492009-10-25T05:47:29.838-07:002009-10-25T05:47:29.838-07:00हकीरजी, ओम भाई, वंदनाजी, अनिलकान्तजी, ज्योतिजी,
आप...हकीरजी, ओम भाई, वंदनाजी, अनिलकान्तजी, ज्योतिजी,<br />आप सबों की टिपण्णी के लिए आभारी हूँ !<br />वंदना अवस्थी दुबेजी और किशोर जी,<br />ऋतज को आशीष देते हुए आपकी टिपण्णी पर मैंने एक प्रति-टिपण्णी लिखी है, कृपया उसे पढने का कष्ट करें और नहले पे दहला दें, तो जानूं !<br />सप्रीत--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-89456944402093772362009-10-25T02:48:00.937-07:002009-10-25T02:48:00.937-07:00जय हो !
कुछ कहने का सामर्थ्य नहीं है इस रचना पर. आ...जय हो !<br />कुछ कहने का सामर्थ्य नहीं है इस रचना पर. आनंद के अतिरेक में हूँ शब्दों के अपनेपन को महसूस कर रहा हूँ .के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-13580773627322872932009-10-25T00:38:47.195-07:002009-10-25T00:38:47.195-07:00विज्ञ वही है,
जो विनाश के कठिन क्षणों में,
आधी अपन...विज्ञ वही है,<br />जो विनाश के कठिन क्षणों में,<br />आधी अपनी सम्पदा बचा ले,<br />सब अनीति सहकर, अन्तर में--<br />आलोक भरा एक दीप जला ले !<br /><br />गम्भीर चिन्तन और चेतनायुक्त कविता. बधाई.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-55978044403789384792009-10-24T12:51:37.707-07:002009-10-24T12:51:37.707-07:00विज्ञ वही है,
जो विनाश के कठिन क्षणों में,
आधी अपन...विज्ञ वही है,<br />जो विनाश के कठिन क्षणों में,<br />आधी अपनी सम्पदा बचा ले,<br />सब अनीति सहकर, अन्तर में--<br />आलोक भरा एक दीप जला ले <br />bahut khoobsurat .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-83220824672435479022009-10-23T06:12:39.689-07:002009-10-23T06:12:39.689-07:00एक बेहतरीन रचना पढने को मिली
बेहतरीन भावों से सजी...एक बेहतरीन रचना पढने को मिली <br />बेहतरीन भावों से सजी हुई <br />पढ़कर मन प्रसन्न हो गया इतनी परिपक्व लेखन देखकरअनिल कान्तhttps://www.blogger.com/profile/12193317881098358725noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-32342405509707760632009-10-23T04:44:25.653-07:002009-10-23T04:44:25.653-07:00ye deep aise hi prajwalit rahe aur margdarshan kar...ye deep aise hi prajwalit rahe aur margdarshan karta rahe.vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-22309047771255323192009-10-23T02:50:43.690-07:002009-10-23T02:50:43.690-07:00ध्यान रहे,
उदात्तता और आदर्शों की
जो थाती हमको सहज...ध्यान रहे,<br />उदात्तता और आदर्शों की<br />जो थाती हमको सहज मिली है,<br />उसका क्षरण न हो पाए ।<br />आधार और संस्कार को कभी<br />ठेस नहीं लगने पाये !!<br /><br />हरकिरत जी के बातो से मै भी सहमत हूँ .....अगर कुछ बचना है तो अपनी संस्कृति और अपनी प्रकृति को बचाये .......बहुत ही सुन्दर भाव से भरी एक बेहतरीन रचना....सादर<br /><br />ओम आर्यओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-17127590957163765572009-10-23T01:06:11.420-07:002009-10-23T01:06:11.420-07:00मन के जिस कोने में मैंने
एक दीप प्रज्ज्वलित रखा है...मन के जिस कोने में मैंने<br />एक दीप प्रज्ज्वलित रखा है<br />आलोक उसी से लेकर मैं तो<br />चलता हूँ जीवन-पथ पर;<br />उसके प्रकाश से जगमग है<br />सृष्टि समग्र, यह मेरा घर !!!<br /><br />ओझा जी!<br />चावल पुराना होकर ही सुगन्ध बिखेरता है।<br />बहुत सुन्दर!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-28193675019524063642009-10-22T10:59:04.288-07:002009-10-22T10:59:04.288-07:00विज्ञ वही है,
जो विनाश के कठिन क्षणों में,
आधी अपन...विज्ञ वही है,<br />जो विनाश के कठिन क्षणों में,<br />आधी अपनी सम्पदा बचा ले,<br />सब अनीति सहकर, अन्तर में--<br />आलोक भरा एक दीप जला ले !<br /><br />बहुत सुंदर.....!!<br /><br />ध्यान रहे,<br />उदात्तता और आदर्शों की <br />जो थाती हमको सहज मिली है,<br />उसका क्षरण न हो पाए ।<br />आधार और संस्कार को कभी <br />ठेस नहीं लगने पाये !! <br /><br />आनंद जी वर्तमान हालातों में संस्कारों को बचाए रखना तो और भी जरुरी हो गया है .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.com