tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post5875412728939875451..comments2024-01-16T01:05:13.385-08:00Comments on मुक्ताकाश....: ताहि बिधि 'मस्त' रहिये...आनन्द वर्धन ओझाhttp://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-14286274894098162032010-03-30T20:33:54.343-07:002010-03-30T20:33:54.343-07:00वंदनाजी, पंकजजी, छूट और अशुद्धियाँ दूर कर दी हैं !...वंदनाजी, पंकजजी, छूट और अशुद्धियाँ दूर कर दी हैं !<br /><br />शास्त्रीजी, सिंह साहेब, ज्योतिजी, आभारी हूँ !<br /><br />अपूर्वजी, आपका आकलन ठीक है, पिताजी भी ऐसे ही महाप्राण थे--घर फूँक तमाशा देखनेवाले ! वह कहते भी थे--'जो घर जारे आपना चले हमारे संग ! बिहार में पश्चिम से उलट चलन जरा सीधा है--जो पद या उम्र में बड़े हैं, वे पूज्य हैं; सबों को उनके चरण छूने हैं, चाहे वे बालक हों या कन्याएं !<br /><br />क्षमाजी, वह गांधीवादी युग था ही ऐसा ! उस काल विशेष में भारत-भूमि बाहुत उर्वरा हो गई थी--रत्नगर्भा ने तब अनेक रत्नों को उपजाया था ! निश्चय ही पूज्य पितामह की याद ने आपको पुलकित किया होगा ! आभारी हूँ !<br /><br />राजऋषिजी, आपके पत्र से मर्म आहात हुआ था. फिर कुछ लिखने का साहस न हुआ ! इस कठिन काल में कठिन और महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं आप सभी ! जो साथी बिछड़ गए, उन्हें मेरा भी नमन !<br />अभिवादन सहित--आ.आनन्द वर्धन ओझाhttps://www.blogger.com/profile/03260601576303367885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-25639036013843351332010-03-29T08:36:23.016-07:002010-03-29T08:36:23.016-07:00आज दिनों बाद रुख किया तो "रऊआ कहत त ठीके बानी...आज दिनों बाद रुख किया तो "रऊआ कहत त ठीके बानी" ने बरबस मुस्कान बिखेर दी होठों पर, विगत कुछ दिनों से उदास मन को।<br /><br />ये सारे संस्मरण इस अद्भुत "मुक्ताकाश" में जो सिमटे पड़े हैं, अनमोल हैं।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-24415215498640138932010-03-27T23:45:25.547-07:002010-03-27T23:45:25.547-07:00राजेंद्र बाबू का कथन असंगत नहीं था। हम छोटी-छोटी त...राजेंद्र बाबू का कथन असंगत नहीं था। हम छोटी-छोटी तकलीफों में टूट जाते हैं, व्यथा के स्पर्श मात्र से हमारी रंगत बदल जाती है, निष्प्रभ और विदीर्ण हो जाता है हमारा मुख-मंडल--ऐसे में 'मस्त' रहने की कल्पना भी हम नहीं कर पाते। लेकिन होशगर होने के बाद से, पूज्य पिताजी से विछोह के क्षण तक, मैंने हमेशा उन्हें 'मस्त' ही देखा है। आत्यंतिक दुःख, कष्ट, पीड़ा और तनाव के क्षणों में भी मैंने उन्हें प्रसन्न और सस्मित ही देखा है। उन्होंने 'मस्त' रहने के कठिन कर्म को जाने किस योगबल से अपने लिए सरल बना लिया था--ऐसा मैं साधिकार कह सकता हूँ; क्योंकि मैं इसका साक्षी रहा हूँ<br /><br />Aapne mujhe apne dadaji ki yaad dila dee...har haal me mast rahnekee kala..Gandhiwadi the dada-dadi....swatantrata sangram me bhag liya..mumbaika aalishan makan chhoda aur gram sewake khatir gaanv me bas gaye..ant tak sadagi poorn jeevan jiya..kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-4976419079478670662010-03-27T11:06:10.940-07:002010-03-27T11:06:10.940-07:00ऊपर पंकज जी ने ठीक कहा है..कि मस्त होना एक कला है....ऊपर पंकज जी ने ठीक कहा है..कि मस्त होना एक कला है..और बहुत श्रमसाध्य..कुछ मस्तों के बारे मे सोचता हूँ..तो याद आते हैं..रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु, कबीर, नरसी, जनक, हरिदास आदि..जहिर है मस्त रहने को घर फूँक तमाशा देखने जैसा जिगर चाहिये..और गीता को माने तो शायद यह मस्त होना ही स्थितिप्रज्ञ होना है..<br />राजेंद्र जी के साथ यह संस्मरण और खासकर महिमा द्वारा उनके चरणस्पर्श का प्रयास बहुत रोचक लगा..वैसे हमारे इधर तो कन्याएं चरण नही छूती हैं..<br />आपके ऐसे संस्मरण ब्लॉग जगत की निधि हैं..यह कहने की जरूरत नही..अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-30058931323219524562010-03-26T10:57:26.588-07:002010-03-26T10:57:26.588-07:00aanand ji namaskaar
aesi durlabh cheeze aapke paa...aanand ji namaskaar <br />aesi durlabh cheeze aapke paas hi sulabh ho sakti hai ,apni bhasha ki mithas ko bahut dino baad mahsoos kiya ,maza aa gaya aesa sansmaran padhkar .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-45199477247281872592010-03-25T13:37:11.483-07:002010-03-25T13:37:11.483-07:00मस्त होना एक कला है.. इसे पागल और कवि ही समझ सकते ...मस्त होना एक कला है.. इसे पागल और कवि ही समझ सकते है... बहुत अच्छा संस्मरण..<br /><br />राऊर, दिल रौवा रौवा हो गईल बा.. लिखत रही, हमरा के ऐजा हमेशा पाईब...Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-83505302093354314282010-03-25T03:31:27.282-07:002010-03-25T03:31:27.282-07:00मस्त होना भी इतना आसानी से नहीं आता ओझा जी...........मस्त होना भी इतना आसानी से नहीं आता ओझा जी.................समापन किश्त में आपने जो निष्कर्ष उडेला है...बहुत ही प्रभावी बन पड़ा है.......! सुन्दर लेखन के लिया धन्यवादPawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-10209827292963291412010-03-25T02:35:18.810-07:002010-03-25T02:35:18.810-07:00बहुत ही बढ़िया रही संस्मरणों की यह श्रंखला!बहुत ही बढ़िया रही संस्मरणों की यह श्रंखला!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5773464208897631664.post-75677495655992149132010-03-25T01:28:02.354-07:002010-03-25T01:28:02.354-07:00बहुत रोचक और प्रेरक संस्मरण. बहुत मज़ा आया. हम सब ...बहुत रोचक और प्रेरक संस्मरण. बहुत मज़ा आया. हम सब के साथ इस संस्मरण को बांटने के लिये आभार. बीच-बीच में कुछ शब्द गायब हैं, इनसे प्रवाह में रुकावट आ रही है, आप देख लें तो अच्छा हो.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.com