बुधवार, 20 मई 2009

कैसे गीत.....

अक्षर-अक्षर व्यथित हो गए
शब्द-शब्द मुरझाये
कैसे गीत लिखूँ मधुऋतु के
भावपुष्प कुम्हलाये ।
सपनों से देहरी सजा दी,
आशाओं से आँगन
इच्छाओं की सूखी डाली,
रुखा-सूखा सावन मरुथल
की यह कठिन तपस्या
देख नयन भर आये। कैसे गीत......
ठौर ठिकाने जितने भी थे,
उन पर काली छाया
शोर समाहित हुआ शहर भी,
लुटी-पिटी यह काया।
सड़क-सडक वीरान हो गयी
चौराहे घबराये ! कैसे गीत.....
भेद-विभेद बढाते आये
जन-प्रतिनिधि विषधर से
बूंद-बूंद अलगाव मांगती
आज मूक निर्झर से!
टहनी-टहनी ठूंठ हो गई
पत्ते सब मुरझाये! कैसे गीत...
गांव-गांव में आग लगी है
धुंआ उठा शहरों से
खंड-खंड हो गया नेह भी
सागर का लहरों से
धागे-धागे उलझे, चादर
झीनी होती जाये।
कैसे गीत लिखूं मधुॠतु के

भावपुष्प कुम्हलाये।

12 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

भेद-विभेद बढाते आये
जन-प्रतिनिधि विषधर से
बूंद-बूंद लगाव मांगती
आज मूक निर्झर से!
बहुत सुन्दर रचना.ब्लौगजगत में आपका स्वागत है. शुभकामनायें.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

चिट्ठाजगत में ऐसे नवगीत
कम ही पढ़ने को मिलते हैं!
---------------
उस सुंदर गीत
और
शुभकामनाओं के साथ
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है!

Unknown ने कहा…

aapne dhanya kar diya saheb.............
bahut si pyas thi mann me, aapne kuchh shanti di
HARDIK BADHAIYAN

बेनामी ने कहा…

अच्छा गीत...बेहतर प्रवाह..

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

very good geet indeed,welcome bhai,aapne sunder rachna ko janm diya.meri shubh kamnayen.
aapka hi
dr.bhoopendra

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

पाती मिली. आभार.ये सिलसिला लम्बा चलेगा. प्रभु जब तक चाहेंगे, लिखता रहूंगा.आप लोगों की रचनायें भी पढने का सौभाग्य मिलेगा.धन्य्वाद सहित.

उम्मीद ने कहा…

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

गार्गी

Sanjay Grover ने कहा…

हुज़ूर आपका भी .......एहतिराम करता चलूं .....
इधर से गुज़रा था- सोचा- सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ

कृपया एक अत्यंत-आवश्यक समसामयिक व्यंग्य को पूरा करने में मेरी मदद करें। मेरा पता है:-
www.samwaadghar.blogspot.com
शुभकामनाओं सहित
संजय ग्रोवर

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

आपकी सम्मति मिली, आभारी हूँ. मैं प्रवास में था. लौटा तो पाती पढ़ी. विलंब से ही सही आभार व्यक्त करता हूँ. मुक्त छंद की एक कविता चिटठा जगत के हवाले करता हूँ, संभवतः यह भी आपको प्रीतिकर लगे. विनीत, आनंद

ज्योति सिंह ने कहा…

आनंद जी ,नमस्कार
अदभुत .

गौतम राजऋषि ने कहा…

सुंदर लय-प्रवाह से सुशोभित मोहक छंद-बद्ध गीत!