[ग़ज़लनुमा]
गुमशुदा लाशें लहरों से ये कहने लगी हैं --
क्यों हवाएं आज परेशान-सी रहने लगी हैं !
वतन की हर गली में हादसों की क्या कमी थी,
सौहार्द्र की इन सीढ़ियों पर चींटियाँ चढ़ने लगी हैं !
वे जल-समाधि पा गए जो उम्र भर जलते रहे,
नाशुक्र आँखें आज फिर क्यों इस तरह बहने लगी हैं ?
हमारी गमगुसारी के लिए इस तंत्र में हलचल हुई,
मुआवज़े को ये कतारें फिर वहीँ लगने लगी हैं !
क्यों फरारों के लिए वारंट जारी कर दिए--
इन तमाशों को भला क्यों पीढियां सहने लगी हैं ?
हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,
इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !!
15 टिप्पणियां:
गुमशुदा लाशें लहरों से ये कहने लगी hain --
क्यों हवाएं आज परेशान-सी रहने लगी हैं !
वतन की हर गली में हादसों की क्या कमी थी,
सौहार्द्र की इन सीढ़ियों पर चींटियाँ चढ़ने लगी हैं !
Duaa karen,watan me sukun mahsoos ho!
... बेहतरीन!!!
आज के हालात का सटीक और सजीव चित्रण्।
हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,
इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !!
वर्तमान का सुन्दर और सटीक चित्रण!
यथार्थ दिखाया है आपने आज इस रचना में ! बेहद उम्दा | शुभकामनाएं !
!वतन की हर गली में हादसों की क्या कमी थी,
सौहार्द्र की इन सीढ़ियों पर चींटियाँ चढ़ने लगी हैं !
व्यवस्था पर करारा प्रहार!!
हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,
इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !!
कमाल के शेर. आपने "गज़लनुमा" लिखा है, इसलिये इसे गज़ल ही मान रही हूं, गज़लगो भले ही इसका तकनीकी पक्ष देखें, मैं तो भाव पक्ष देख रही हूं, जो कमाल का है.
आज के सही हालात प्रष करती अच्छी रचना
Great daddy!!! what a strong verse...u making us proud as always!Love!
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हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,
इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !
!वतन की हर गली में हादसों की क्या कमी थी,
सौहार्द्र की इन सीढ़ियों पर चींटियाँ चढ़ने लगी हैं
bahut hi khoobsurat bhav .uttam .
इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा "चर्चा मंच" पर भी है!
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http://charchamanch.blogspot.com/2010/06/193.html
वे जल-समाधि पा गए जो उम्र भर जलते रहे,
नाशुक्र आँखें आज फिर क्यों इस तरह बहने लगी हैं
आक्रोश है इस ग़ज़ल में ... जमाने से क्षोभ है .... बहुत कमाल का लिखा है ..
मंगलवार 29 06- 2010 को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !!एक दूसरे की भावनायें आपस मे ही लड़ने लगी हैं। सुन्दर रचना।
क्यों फरारों के लिए वारंट जारी कर दिए--
इन तमाशों को भला क्यों पीढियां सहने लगी हैं ?
हादसों के सिलसिले अब हद से ज्यादा हो गए,
इस 'बड़े' जनतंत्र में सारी हदें बढ़ने लगी हैं !!
वतन की हर गली में हादसों की क्या कमी थी,
सौहार्द्र की इन सीढ़ियों पर चींटियाँ चढ़ने लगी हैं !
bahut hi laazwaab
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