मंगलवार, 24 अगस्त 2010

शोला बुझा भी था, नहीं था...

आसमाँ पर एक सितारा ऐसा भी था,
चमक रहा था, लेकिन थोड़ा मद्धम ही था !

उसकी आँखों में सपने थे रौशन-रौशन,
वह भी तो आँखों के धोखे-जैसा ही था !

छाती में तूफ़ान लरजता रहता हरदम,
दूर-दूर तक कोई समंदर वहाँ नहीं था !

खोज रहा था वही सितारा हमदम अपना,
बादल पीछे छिपा सितारा वहाँ नहीं था !

जब भी मैंने हाथ बढाया, मिला नहीं वो,
गुस्से में था आग-बबूला जहाँ कहीं था !

हाय, समझ पर उसकी हैरानी होती है,
'मैं' भी मेरा था कि वह मेरा नहीं था !

जख्म खाकर क्या दिखाते हो मुझे,
क्या बह रहा जो खून था, मेरा नहीं था ?

राख के इस ढेर को तुम मत कुरेदो,
क्या पता शोला बुझा भी था, नहीं था !

7 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

जख्म खाकर क्या दिखाते हो मुझे,
बह रहा जो खून क्या, मेरा नहीं था ?

वाह! क्या बात है!यही समझ लिया जाए तो सारे झगड़े ख़्त्म हो जाएं

राख के इस ढेर को तुम मत कुरेदो,
क्या पता शोला बुझा भी था, नहीं था !

बहुत ख़ूब!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शुरू के चार मिसरे तो बहुत बढ़िया है!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

छाती में तूफ़ान लरजता रहता हरदम,
दूर-दूर तक कोई समंदर वहाँ नहीं था

बहुत दिनों के बाद उपस्थिति दर्ज़ कराई है आपने, इस खूबसूरत रचना के साथ
और-
राख के इस ढेर को तुम मत कुरेदो,
क्या पता शोला बुझा भी था, नहीं था !
बहुत शानदार. आभार.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

आसमाँ पर एक सितारा ऐसा भी था,
चमक रहा था, लेकिन थोड़ा मद्धम ही था

राख के इस ढेर को तुम मत कुरेदो,
क्या पता शोला बुझा भी था, नहीं था !
कहीं ब्लॉग में हो पढ़ा था ग़ज़ल ग़ज़ल होती है अच्छी या बुरी नहीं....फिर भी ये दोनों शे'र खास पसंद आये.

ज्योति सिंह ने कहा…

जख्म खाकर क्या दिखाते हो मुझे,
बह रहा जो खून क्या, मेरा नहीं था

राख के इस ढेर को तुम मत कुरेदो,
क्या पता शोला बुझा भी था, नहीं था !
laazwaab ,bahut khoob .

बेनामी ने कहा…

bahut hi badiya...

A Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)

Banned Area News : It's difficult to recreate same emotion in remake: Aamir