कभी-कभी सन्नाटों में
खामोश पत्थर भी चीखते हैं,
हवाएं सीटियाँ बजाती हैं,
पत्ते मीठा राग सुनाते हैं,
वर्षा की बूँदें संगीत का
अतीन्द्रिय सुख देती हैं,
फूलों की पंखुड़ियां
हवा की लय पर थरथराती हैं
और बहुत कुछ अनकहा कह जाती हैं !
मनुष्य अपनी चेतना के
श्रवण-रंध्रों से उन्हें सुनता है,
मन में गुनता है
और इस अपूर्व सुख-सृष्टि में रमा रहता है !
लेकिन निःशब्द स्वरों को
सुनना-पढ़ना आसान नहीं होता !
आँखें बहुत कुछ बोलती हैं
हम उसे सुन नहीं पाते,
मुद्राएँ जो व्यक्त करती हैं
उन्हें हम समझ नहीं पाते,
लिखी-छपी इबारतें भी
जो कहती हैं, कहना चाहती हैं
उन्हें हम ठीक-ठीक पकड़ नहीं पाते
और सच मानिए,
अभिप्राय की तह तक
ज्यादातर पहुँच नहीं पाते !
सोचता हूँ,
जो मौन की भाषा समझ नहीं पाते,
वे लिखे हुए को भी कितना समझेंगे,
दृश्य को अदृश्य से किस तरह जोड़ेंगे ?
अलग-अलग रंगों के चश्मे से
अपनी ही आँखें फोड़ेंगे !
लेकिन बहुत कुछ ऐसा है
जो रचा नहीं गया
और मुझसे ये कहे बिन रहा नहीं गया
कि शब्द और मौन का द्वंद्व पुराना है,
सन्नाटे का भी अपना एक संगीत है,
छंद है, गाना है !
लेकिन सच है,
सब कुछ कहा नहीं जा सकता,
शब्दों के सांचे में
समष्टि को बांधा नहीं जा सकता !
लेकिन सच ये भी है कि
आज की भीड़-भरी
और शोर-गुल से थरथराती दुनिया में
मौन का दर्शन समझ पाना
सचमुच, आसान नहीं है,
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !!
24 टिप्पणियां:
नि:शब्द ही कर दिया………………गज़ब के भाव बिन्दु……………एक गहरे सागर मे जैसे गोता लगाया हो और वहाँ से मोती चुनकर लाये हों……………मौन की भाषा का सजीव चित्रण्।
... bahut sundar ... behatreen !!!
लेकिन सच ये भी है कि
आज की भीड़-भरी
और शोर-गुल से थरथराती दुनिया में
मौन का दर्शन समझ पाना
सचमुच, आसान नहीं है,
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !!
Nihayat sundar! Vandana ji kee tippanee kitna kuchh kah rahee hai!
जी हाँ जो मौन की भाषा समझते हैं सफल रहते हैं ,विपरीत जो चलते हैं असफल हो जाते हैं .
आज के वाचालता के युग में सामयिक कविता के लिए धन्यवाद .
Maun ki bhasha aur shabdo ki bhasha ka sundar samanvay :)
मौन का दर्शन समझ पाना
सचमुच, आसान नहीं है,
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !
--
यही तो लोग समझ नही पाते हैं!
--
सारगर्भित रचना!
शनिवार के चर्चामंच पर इसकी चर्चा होगी!
जो मौन की भाषा समझ नहीं पाते,
वे लिखे हुए को भी कितना समझेंगे,
बहुत सुन्दर . एक मौन जितने शब्दों को विस्तार दे सकता है, उतने शब्द भी भावों को व्यक्त नहीं कर सकते. अब देखिये न, छोटे बच्चे, जो पूरी तरह बोल नहीं पाते, अपनी बात मौन-मुद्राओं के ज़रिये ही कितने बेहतर ढंग से समझा देते ऐं, और हम समझ जाते हैं, क्योंकि समझने की कोशिश करते हैं....
और यदि मौन को समझने की कोशिश ही न की जाये तो? बहुत सुन्दर कविता है.
बहुत खूब कविता. वाह .
सोचता हूँ,
जो मौन की भाषा समझ नहीं पाते,
वे लिखे हुए को भी कितना समझेंगे,
दृश्य को अदृश्य से किस तरह जोड़ेंगे ?
अलग-अलग रंगों के चश्मे से
अपनी ही आँखें फोड़ेंगे !
मौन की भाषा ....और उसकी पहचान ...बहुत अच्छी लगी कविता..
सोचता हूँ,
जो मौन की भाषा समझ नहीं पाते,
वे लिखे हुए को भी कितना समझेंगे,
sateek baat kahi hai!
sundar rachna!!!
maun sangeet sa...
खामोशी ही तो हमारी भावनाओं की सबसे खूबसूरत अभिव्यक्ति होती है. निशब्द संसार अर्थों का अथाह अतल सागर होता है जो हर बात में नए आयामों को रच देता है. बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
train men mile the lag bhag 37 saal baad. aapki shaksiat ka andaaza hua. bahut shubhkamnayen.
himendu
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
फूलों की पंखुड़ियां
हवा की लय पर थरथराती हैं
और बहुत कुछ अनकहा कह जाती हैं !
क्या बात है भैया !
मैं कई बार आई और पढ़ कर चली गई ,आप की कविताओं पर कमेंट करना कम से कम मेरे लिये बहुत ही मुश्किल है
लिखी-छपी इबारतें भी
जो कहती हैं, कहना चाहती हैं
उन्हें हम ठीक-ठीक पकड़ नहीं पाते
और सच मानिए,
अभिप्राय की तह तक
ज्यादातर पहुँच नहीं पाते !
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !
लेकिन ये कुछ ऐसी पंक्तियां हैं जो मन को छू जाती हैं
कितना कुछ कहा अनकहा , सुना अनुसुना रह जाता है ..
कोलाहल में निःशब्द की पहचान आसान नहीं है ...
वहुत सुंदर !
वहुत खूब !
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, मन खुश हो गया.
नि:शब्द को समझाने में शब्दों की जहाँ तक पहुँच हो सकती है , वहाँ तक पहुँचा दिया आपने .
मौन का दर्शन समझ पाना
सचमुच, आसान नहीं है,
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !!
समझा तो बहुत हद तक।
वस्तुतः
जो कुछ भी रह गया है
कहीं कुछ होने से
मेरी ही तरह हाशिये पर है.
...शब्द और मौन का द्वंद्व पुराना है,
सन्नाटे का भी अपना एक संगीत है,
छंद है, गाना है ...
...बहुत सुंदर । ये पंक्तियाँ बेजोड़ हैं, सारगर्भित हैं, इतनी सहज हैं कि ह्रदय में बस जाना चाहती हैं।
..आभार।
मुझे प्रारंभ में...
कभी-कभी सन्नाटों में
खामोश पत्थर भी चीखते हैं..
..कभी-कभी लगाना खला। हम कभी-कभी सुन पाते हैं यह सच है लेकिन खामोश से दिखाई देने वाले पत्थर तो हमेशा ही चीखते हैं..
que harГamos sin su idea brillante
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आभार व्यक्त करना तो बनता है बंधुओ ! किसी रचना के मूल तत्वों पर पैनी नज़र रखनेवाले आप सभी बंधुओं के प्रति आभारी हूँ !
साभिवादन !
--आ.
शोर-गुल से थरथराती दुनिया में
मौन का दर्शन समझ पाना
सचमुच, आसान नहीं है,
कोलाहल में
निःशब्द की पहचान नहीं है !!
कभी-कभी अच्छे शब्दों की प्रशंसा करने मे शब्द ही विद्रोह कर देते हैं..हथियार डाल देते हैं..ऐसा ही कुछ लगा इसे पढ़ कर..मौन आत्मा की भाषा होती है..जिसे सांसारिक कोलाहल के बीच सुनना संभव नही हो पाता..हमारे शब्द हमारी अभिव्यक्ति की सीमाएं तय करते हैं..मगर हमारी अनुभूति तो कहीं इनसे परे है..भाषा-शब्द के दायरे से बहुत बाहर..जब हम भाषा की नाव का सहारा छोड देते हैं..तभी भावनाओं की अगाध तलहटी तक गोता लगा पाते हैं..अनुभूति के मणि-माणिक्य का खजाना तभी हम पर खुलता है..जब वे हमारी अभिव्यक्ति की जेबों की गुलाम नही होती..और वहाँ तक सिर्फ़ मौन ले कर जाता है हमें..प्रकृति का एकांत-राग..जब हमे जड़ से संवाद करने की कला आ जाती है..दृष्य को अदृश्य से जोड़ने की कला...यही होता होगा अनहद-गान..शायद यही होगी निःशब्द की पहचान..
लम्बे समय के बाद आ पाया..मगर खाली हाथ नही जा रहा..
भावनाओं की सबसे खूबसूरत अभिव्यक्ति मौन है, ख़ामोशी है, नि:शब्द हो जाना है. सच में, इस परिस्थिति की चीखों को जान पाना, समझ पाना या पढ़ पाना इस सांसारिक कोलाहल में शायद ही संभव है.
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