धूप का एक टुकड़ा
मेरे आँगन में मुस्कुराया,
मैंने सजदे में सिर झुकाया और--
खुद को समझाया--
चलो, एक उजाला
मेरी गिरफ्त में है;
लेकिन शाम से पहले ही
धूप का वह टुकडा
आँगन से नदारद था !
मैं मायूस तो था,
फिर भी मुस्कुराया था--
धूप-छाँव की यह ज़िन्दगी
यूँ ही कटेगी--
खरामा... खरामा ..... !!
6 टिप्पणियां:
चलो, एक उजाला
मेरी गिरफ्त में है;
क्या बात है !!!!
वाह!! बहुत सुन्दर.
एक ही कमेंट दो बार पोस्ट हो गया था. इसलिये एक हटा दिया है.
अपनी ही मुठ्ठी को बंद कर
कहता है धूप को पकड़ लिया
दिखने लगीं जब अपनी झुर्रियाँ
कहता है ये कोई और है!
...अहसास जगे..खरामा खरामा।
मैंने सजदे में सिर झुकाया और--
खुद को समझाया--
चलो, एक उजाला
मेरी गिरफ्त में है;
और
धूप-छाँव की यह ज़िन्दगी
यूँ ही कटेगी--
खरामा... खरामा ..... !!
ज़िन्दगी के उतर चढाव को बयान करती प्रभावी रचना.
आप सबों का आभारी हूँ !
--आ.
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