अब अपने आप से परेशान हो गए हैं हम,
आदमी थे अब तलक, शैतान हो गए हैं हम!
उन्हें जम्हूरियत ने सिखा दी ये अदा भी--
दीदें फाड़कर बताते हैं, महान हो गए हैं हम!
ख़ुशी हो, गम हो या खौफनाक मंज़र हो,
सुर्खियाँ बटोरने को हैवान हो गए हैं हम!
सियासत उनके पांवों की हाँ, बन है बेड़ी,
कभी बा-ईमान थे, बे-ईमान हो गए हैं हम!
रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर,
और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम!
कोई हाल तो पूछे, जिनके घरवाले नहीं लौटे,
सियासतदान क्या जाने, हलकान हो गए हैं हम!
ऐसी मौतों पर अब तो पीढियां रोती रहेंगी,
सैलाब से गिला कैसा, पहाड़ों पर मेहरबान हो गए हैं हम!
गर समय से देश के रक्षक वहाँ नहीं आते,
हलक में जाँ फँसी थी, श्मशान हो गए थे हम!
वो सज़दे में झुके थे, तेरे दर पर पहुँचकर,
खुदा की दरियादिली के कद्रदान हो गए हैं हम!
भई, हमसे तो खासे भले हैं जानवर भी,
क्या पता कैसे अब, इंसान हो गए हैं हम!!
आदमी थे अब तलक, शैतान हो गए हैं हम!
उन्हें जम्हूरियत ने सिखा दी ये अदा भी--
दीदें फाड़कर बताते हैं, महान हो गए हैं हम!
ख़ुशी हो, गम हो या खौफनाक मंज़र हो,
सुर्खियाँ बटोरने को हैवान हो गए हैं हम!
सियासत उनके पांवों की हाँ, बन है बेड़ी,
कभी बा-ईमान थे, बे-ईमान हो गए हैं हम!
रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर,
और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम!
कोई हाल तो पूछे, जिनके घरवाले नहीं लौटे,
सियासतदान क्या जाने, हलकान हो गए हैं हम!
ऐसी मौतों पर अब तो पीढियां रोती रहेंगी,
सैलाब से गिला कैसा, पहाड़ों पर मेहरबान हो गए हैं हम!
गर समय से देश के रक्षक वहाँ नहीं आते,
हलक में जाँ फँसी थी, श्मशान हो गए थे हम!
वो सज़दे में झुके थे, तेरे दर पर पहुँचकर,
खुदा की दरियादिली के कद्रदान हो गए हैं हम!
भई, हमसे तो खासे भले हैं जानवर भी,
क्या पता कैसे अब, इंसान हो गए हैं हम!!
4 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत और सटीक प्रस्तुति...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जनसंख्या विस्फोट से लड़ता विश्व जनसंख्या दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
रो पड़ी आँखें मेरी, उजड़े चमन को देखकर,
और आँखें मूंदकर, भगवान् हो गए हैं हम!
bahut khoob ....!!
ग़ज़ल की बहर के व्याकरण से थोड़ी स्वतन्त्रता लेते हुए और दो मिसरों के लिए क्षमा-प्रार्थना के साथ आप सबों का आभारी हूँ...!
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