एक मुट्ठी ख़ाक...
किनारे को रात भर लहरों का इतजार रहा,दरिया किनारे बैठकर मैं भी बड़ा बेजार रहा !खुशियों के इक सैलाब से जो डूबकर बाहर आया, सदियों उसी खुशी के नाम वो बहुत बीमार रहा !उस दरख्त के टूटने का सबब मत पूछो,कभी हवा में झूमता वह बहुत दमदार रहा । जिसने इक आग कलेजे में जलाए रक्खी,उन्हीं आंखों से बरसात का इज़हार रहा । पांव जिनके ज़मीं पर नहीं पड़ते थे कभी,उनके दामन में ख़ाक बेशुमार रहा । इश्क और प्यार की तो बात ही बेमानी है,क्या खुदा उनकी नज़र में, इंसां भी बाज़ार रहा ।मोल मिटटी का कुछ भी नहीं होता है, मगरइक मुट्ठी ख़ाक ही मेरा तो जाँ-निसार रहा ।।
13 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भाव है कविता के……………आभार ।
"उस दरख्त के टूटने का सबब मत पूछो,
कभी हवा में झूमता वह बहुत दमदार रहा । "
बहुत ही सुन्दर रचना |
मोल मिटटी का कुछ भी नहीं होता है, मगर
इक मुट्ठी ख़ाक ही मेरा तो जाँ-निसार रहा ।।
मिट्टी का मोल शे'र के जरिये बखूबी कह गये आप। जीवन के बिल्कुल करीब या यूं कहूं जीवन ही, आपकी रचना में झलकता है। अनुभव हर शब्द से टपकता है, यही हम जैसों के लिये शहद हो सकता है यदि रसास्वादन कर उसका उपयोग किया जाये।
पांव जिनके ज़मीं पर नहीं पड़ते थे कभी,
उनके दामन में ख़ाक बेशुमार रहा ।
एक-एक शब्द भीतर तक उतरता जाता है. हर शेर पर दिमाग में तस्वीर सी बनती है, आपकी रचनाओं पर जीवन का रेखांकन करना कितना आसान है.
इश्क और प्यार की तो बात ही बेमानी है,
क्या खुदा उनकी नज़र में, इंसां भी बाज़ार रहा ।
सभी शेर लाजवाब हैं, बहुत आनंद आया.
उस दरख्त के टूटने का सबब मत पूछो,
कभी हवा में झूमता वह बहुत दमदार रहा ।
ओझा जी!
आपने वाकई बढ़िया अशआर पेश किये हैं।
बधाई।
"किनारे को रात भर लहरों का इतजार रहा,
दरिया किनारे बैठकर मैं भी बड़ा बेजार रहा !"
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...बहुत बहुत बधाई...
ओझा जी ,
सब आपका ही आर्शीवाद है |
"म" में हलंत लगने दे , सब प्रभु लीला है |
८ दिन का था जब डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे
जो हूँ उसी "शिवम्" की वजह से हूँ |एक बार फ़िर बहुत बहुत धन्यवाद |
मोल मिटटी का कुछ भी नहीं होता है, मगर
इक मुट्ठी ख़ाक ही मेरा तो जाँ-निसार रहा ।।
..क्या बात कही है सर जी..बधाई.
उस दरख्त के टूटने का सबब मत पूछो,
कभी हवा में झूमता वह बहुत दमदार रहा ।
जिसने इक आग कलेजे में जलाए रक्खी,
उन्हीं आंखों से बरसात का इज़हार रहा ।
पांव जिनके ज़मीं पर नहीं पड़ते थे कभी,
उनके दामन में ख़ाक बेशुमार रहा ।
बहुत खूबसूरत गजल है । एक ही चीज के दो विपरीत अवस्थाओं की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
शुक्रिया ।
खुशियों के इक सैलाब से जो डूबकर बहार आया,
सदियों उसी खुशी के नाम वो बहुत बीमार रहा !
ये दो पंक्तियाँ तो दिल को छूकर गुजर गयी .....बहुत खुब
मोल मिटटी का कुछ भी नहीं होता है, मगर
इक मुट्ठी ख़ाक ही मेरा तो जाँ-निसार रहा ।।
बहुत खूब लाजबाब लिखा है
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
आप सबों ने मेरे अशार को पसंद किया और टिप्पणियां दे कर मेरा लिखने का उत्साह बढाया, मैं तहे-दिल से आभारी हूँ ! anand v.
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