गुरुवार, 24 सितंबर 2009
कोई दरमियाँ नहीं होता...
है स्याह या सुफैद ये चेहरे से बयाँ नहीं होता ,
तुमने भी पीर-ए-लफ्ज़ मुसलसल कहा नहीं होता !
एक किरण तो बची रहती मेरे भी आशियाने में,
बदहाल ज़िन्दगी का कोई पासबां नहीं होता !
इन अजीब रिश्तों की कितनी कमज़ोर थी ज़मीन,
बिखरने पे गुलाब के गुलशन खुशनुमां नहीं होता !
पूरी तरह बेनकाब इस ज़िन्दगी को होने दो,
स्याह अंधेरों में कोई दागदां नहीं होता !
मेरा जुनून कभी तो बेहिसाब बोलेगा,
अंधी खमोशियों से कुछ भी अयाँ नहीं होता !
बूंदें शबनम की नहीं आग बरसती हो जहाँ,
शाख-ए-गुल की कौन कहे पतझर भी वहां नहीं होता !
मेरे संग-ए- दर पे फोड़ी है ये किस्मत किसने,
अंपने गिरेबां से उलझना कहाँ नहीं होता !
कभी बलंदियों पे मेरा भी मिजाज़ पहुंचेगा,
बद-दिमाग लोगों का कोई रहनुमां नही होता !
एक अदद दिल था मेरा तड़प उठा वो बेहिसाब,
काश ! इस फितरत का कोई निगेह्बां नहीं होता !
किस कदर लोग परेशां हो उठे समंदर के लिए,
बूंदें मचल के कह उठीं कोई दरमियाँ नहीं होता !
परवाज़ बलंदियों पे मैं करता नहीं, वरना--
इस कदर खफा मेरा आसमां नहीं होता !!
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20 टिप्पणियां:
किस कदर लोग परेशां हो उठे समंदर के लिए,
बूंदें मचल के कह उठीं कोई दरमियाँ नहीं होता !
बेहतरीन अशआरों से सजी नज़्म पेश करने के लिए बधाई!
urdu ki jyada samajh nhai , phir bhi mujhe aapaki gazar bahut gahari aur umda lagi....
इसीलिए आपका नाम आनंद है
इन शेर को देख कर जी चाहता है अभी कमेन्ट न किया जाये, कुछ और आनंद उठा लूं. प्रणाम !
'एक अदद दिल था मेरा तड़प उठा वो बेहिसाब,
काश ! इस फितरत का कोई निगेह्बां नहीं होता !'
क्या कहेने !!! बहुत उम्दा !!!
बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया !!
बूंदें शबनम की नहीं आग बरसती हो जहाँ,
शाख-ए-गुल की कौन कहे पतझर भी वहां नहीं होत
Bahut badhiya sher aur gazal bhee behatareen.
बूंदें शबनम की नहीं आग बरसती हो जहाँ,
शाख-ए-गुल की कौन कहे पतझर भी वहां नहीं होत
Bahut badhiya sher aur gazal bhee behatareen.
kis kis sher ki tarif karoon.........har sher lajawaab hai.
बहुत अच्छे लगे ये शेर! बधाई!
वाह वाह क्या बात है !
बहुत बढिया लिखा है ।
बहुत गहरे अर्थ लिए अशआर.हर बार पढने पर कई नए अर्थ नुमाया होते है.आभार.
इन अजीब रिश्तों की कितनी कमज़ोर थी ज़मीन,
बिखरने पे गुलाब के गुलशन खुशनुमां नहीं होता !
आन्नद जी आपकी रचना हर एक दृष्टि से एक उत्कृष्ट रचना होती है ..........एक से बढ्कर एक पंक्तियाँ है .......ये पंक्तियाँ दिल के करीब लगी .........दस बार पढ चुका हूँ.....बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति
सादर
ओम
bahut sundar gajal hai.
पूरी तरह बेनकाब इस ज़िन्दगी को होने दो,
स्याह अंधेरों में कोई दागदां नहीं होता !
bhut khoob achi gjal
badhai
एक किरण तो बची रहती मेरे भी आशियाने में,
बदहाल ज़िन्दगी का कोई पासबां नहीं होता !
पूरी तरह बेनकाब इस ज़िन्दगी को होने दो,
स्याह अंधेरों में कोई दागदां नहीं होता !
वाह क्या खूब है ,लाजवाब .आनंद जी बहुत बेहतरीन है ,मन को छू गयी .
इन अजीब रिश्तों की कितनी कमज़ोर थी ज़मीन,
बिखरने पे गुलाब के गुलशन खुशनुमां नहीं होता
बहुत सुन्दर !!!!!!!!!!
दिल को छू गई स्वार्थ भरी दुनिया की हकीक़त बताने की ये बेहतरीन अदा
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
मेरा जुनून कभी तो बेहिसाब बोलेगा,
अंधी खमोशियों से कुछ भी अयाँ नहीं होता !
huzoor !! aapki iss nayaab takhleeq ka ye sher apne saath liye ja raha hooN....
waah,,,kayaa umdaa khayaalaat haiN....
badhaaee .
---MUFLIS---
माननीय, आपके ब्लॉग का पता अभी चला और गजल का ज़िक्र पढ़कर खुद को आने से रोक नहीं सका. आपका लेखन बेहतर, स्पष्ट है. 'गजल' बहुत खराब विद्या है. इसे समझने में ही उम्र गुजर जाती है और हम, ककहरे से आगे भी नहीं बढ़ पाते. मैं आप से उम्र में थोड़ा कम हूँ इस लिए यह कहने की धृष्टता कर रहा हूँ कि बड़े भाई थोड़ी मेहनत और. अगर बुरा लगा हो तो "क्षमा बड़न को....' ठीक है ना!!
ब्लौग पर आते ही शर्मिन्दा हो जाती हूं जब देखती हूं कि यहां तो सब हर एक शे’र की समीक्षा कर ही चुके हैं. मैं इतनी लेट-लतीफ़ तो नहीं थी...अब क्या कहूं? वैसे भी आपके लिखे पर टिप्पणी करने का साहस कम ही कर पाती हूं. फिर भी मुझे जो सबसे अच्छा लगा-
कभी बलंदियों पे मेरा भी मिजाज़ पहुंचेगा,
बद-दिमाग लोगों का कोई रहनुमां नही होता !
आदरणीय आनन्दवर्धन जी,
गज़ल में अश’आर वो गहराई लिये हुये हैं जो किसी तपस्या के बाद ही आती है।
किस शे’र की बात करूं यह समझ ही ना पा रहा हूँ फिर भी मुझे जो अपनी जिन्दगी करीब लगे :-
पूरी तरह बेनकाब इस ज़िन्दगी को होने दो,
स्याह अंधेरों में कोई दागदां नहीं होता !
कभी बलंदियों पे मेरा भी मिजाज़ पहुंचेगा,
बद-दिमाग लोगों का कोई रहनुमां नही होता !
किस कदर लोग परेशां हो उठे समंदर के लिए,
बूंदें मचल के कह उठीं कोई दरमियाँ नहीं होता !
एक बहुत ही अच्छी गज़ल कहने के लिये आपका आभार।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आप सबों का बहुत-बहुत आभारी हूँ ! एक यात्रा पूरी कर लौटा हूँ, कल फिर यात्रा में रहूँगा, दस दिनों का प्रवास होगा, वहां प्रबंध हो सका तो ब्लॉग पर हाज़िर हो सकूँगा, अन्यथा दस दिनों के लिये अलभ्य हो जाऊँगा, क्षमा करेंगे !
अनिल्कांतजी, साधनाजी और हिमांशुजी ;
आप तीनो के प्रति अतिरिक्त आभार व्यक्त करता हूँ !
आपने मेरी ब्लॉग मित्रता स्वीकार कर मुझे उपकृत किया है ! anand v.
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