[मित्रों, आज प्रभु-कृपा से मैंने जीवन के साठ वर्ष पूरे किये हैं. सुबह सोकर उठा, तो प्रथमतः जो भाव उपजे, उन्हें कविता-तत्त्व का ख़याल किये बिना लिख डाला था. इन भावों को आपके सम्मुख रख रहा हूँ. --आ.]
मैं न रुका था कभी,
मैं न झुका था कभी,
जीवन की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते
साठ सीढ़ियाँ लाँघ चुका मैं
सोच रहा हूँ--
अभी और आगे चलना है,
निर्द्वंद्व चलूँगा,
नहीं रुकूँगा,
लूँगा अब संकल्प नए,
स्वर नए साधूंगा,
काल के कपाल पर
पाग नया बांधूंगा,
अवरोधों से जूझूंगा,
जीवन को और ज़रा बूझूँगा !
जब तक सीढ़ी ख़त्म न हो
चढ़ता जाउंगा,
बढ़ता जाउंगा;
चुकना होगा जब--
चुक जाऊँगा,
अभी नहीं चुका हूँ मैं...!
6 टिप्पणियां:
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
सादर !
भुने काजू की प्लेट, विस्की का गिलास, विधायक निवास, रामराज - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सर , जन्मदिन की ढेरों बधाइयाँ , जब आपने कविता तत्व का ख्याल नहीं रखा तो इतनी सुन्दर कविता लिखी , ख़याल रखते तो क्या बात थी |
पुनः बधाई |
सादर
आपको जन्मदिन की मंगलकामनायें। आपके सभी संकल्प पूरे हों।
मेरी ओर से भी आपको हैप्पी बर्थ डे
आदरणीय ओझा जी को जन्मदिन की शुभकामनायें।
आप सबों को धन्यवाद देता हूँ और आपकी सुभेच्छाओं के लिए आभारी हूँ.
--आ.
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