मन की मोहक चिड़िया बोली,
नया साल आया है,
उठो, लिखो कुछ आज,
कोई ख़याल नया आया है?
मैं बोला उस चिड़िया से,
तू नाहक चीं-चीं करती है,
बहुत सबेरे मुझे जगाकर
माथापच्ची करती है !
वर्षों का क्या करूँ मोल मैं,
जीवन-क्षण बीत रहा है,
अंतर का जो सहज भाव था,
प्रतिक्षण रीत रहा है !
बस, सम्बल है एक भाव का,
अन्तस्तल निष्कलुष रहे,
मलिन वसन हो तन पर लेकिन,
घट-नाद निष्कलुष रहे!
मैंने देखा, यह सुनकर
चिड़िया पलकें झपकाती है,
अपने पंख खोलकर वह,
मन-आँगन में उड़ती जाती है!
विगत वर्ष का शोक क्या करूँ,
नए वर्ष का अभिनन्दन !
अभिवादन है आप सबों का,
सबका करता मैं वंदन!!
--आनंदवर्धन ओझा.
[नव-वर्ष प्रभात पर रचित पंक्तियाँ, १ जनवरी, २०१४]
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर कविता है। नव वर्ष आपके लिए मंगलमय हो।
सुंदर कविता।
नववर्ष मंगलमय हो।
वाह....कितना सुन्दर अभिनन्दन..आभार. अशेष शुभकामनाएं.
सादर
मेरा वंदन आप लोगों को पसंद आया...आप सबों का आभार!
--आनंद.
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