रविवार, 18 जनवरी 2015

देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर महाकवि निराला की संभवतः अप्रकाशित कविता...

[बंधु ! इस बार पटना से जो गट्ठर मेरे साथ आया है, उसकी पोटली नंबर-2 में एक बहुमूल्य पत्र निरालाजी की कविता के साथ मुझे मिला है । पत्र पिताजी को संबोधित है, जून 1942 का है । उन दिनों पिताजी 'आरती' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन-प्रकाशन अपने स्वत्वाधिकार के 'आरती मन्दिर प्रेस, पटना से कर रहे थे । यह महत्वपूर्ण रचना भी निरालाजी ने पिताजी के पास प्रकाशन के लिए भेजी थी, मुझे मालूम नहीं कि यह पत्रिका में छपी या नहीं, क्योंकि जैसा पिताजी से सुना था, सन ४२ के विश्व-युद्ध के दौरान ही 'आरती' का प्रकाशन अवरुद्ध हो गया था । मुझे यह भी नहीं मालूम कि देशरत्न पर लिखी उनकी यह कविता कहीं, किसी और ग्रन्थ में संकलित हुई या नहीं....! अगर नहीं हुई, तो निःसंदेह यह अत्यंत महत्त्व का दस्तावेज़ है ।
मुझे आश्चर्य इस बात का है कि पिताजी जैसे असंग्रही व्यक्ति के पुराने गट्ठर में और खानाबदोशी की हालत में निरंतर घिसटते हुए यह पत्र आज भी 73 वर्षों बाद बचा कैसे रह गया...? संभवतः, मेरे सौभाग्य से ! मूल और टंकित प्रति के साथ आज इसे लोकार्पित कर धन्य हो रहा हूँ । --आनन्दवर्धन ओझा]
C/o Pandit Ramlalji garg,
karwi, Banda (U.P.)
15.6.'42.
प्रिय मुक्तजी,
क्षमा करें । मैं यथासमय आपको कुछ भेज नहीं सका । यह रचना देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसादजी पर है । भेज रहा हूँ । स्वीकृति भेजें । आप अच्छी तरह होंगे । मेरी 'आरती' इस पते पर भेजें--
श्रीरामकृष्ण मिशन लाइब्रेरी,
गूंगे नव्वाब का बाग़,
अमीनाबाद, लखनऊ ।
उत्तर ऊपर के पते पर । नमस्कार ।
आपका--
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
[पत्र के पृष्ठ-भाग पर कविता]
देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के प्रति...
उगे प्रथम अनुपम जीवन के
सुमन-सदृश पल्लव-कृश जन के ।
गंध-भार वन-हार ह्रदय के,
सार सुकृत बिहार के नय के ।
भारत के चिरव्रत कर्मी हे !
जन-गण-तन-मन-धन-धर्मी हे !
सृति से संस्कृति के पावनतम,
तरी मुक्ति की तरी मनोरम ।
तरणि वन्य अरणि के, तरुण के
अरुण, दिव्य कल्पतरु वरुण के ।
सम्बल दुर्बल के, दल के बल,
नति की प्रतिमा के नयनोत्पल ।
मरण के चरण चारण ! अविरत
जीवन से, मन से मैं हूँ नत ।।
--'निराला'

5 टिप्‍पणियां:

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

सचमुच, आश्चर्य है, किसी महानुभाव ने इन महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को देखा-पढ़ा ही नहीं क्या... या ब्लॉगिंग के दिन लद गए,,,? यहां श्रम करना वक़्त को बर्बादी ही है क्या...?

HARSHVARDHAN ने कहा…

संभवत: आपके इस अनोखे चिट्ठे पर पहली बार आना हुआ है, और आते ही मुझे कवि सूर्यकान्त "निराला" जी की अनपढ़ी रचना पढ़ने को भी मिली जिसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूँगा। सादर ...अभिनन्दन।।

नई कड़ियाँ :- नेत्रहीनों की भाषा (ब्रेल लिपि) का जनक - लुईस ब्रेल

समर्पित योद्धा कवि का अवसान - डॉ. रवींद्र चतुर्वेदी (पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की पुण्यतिथि पर विशेष)

HARSHVARDHAN ने कहा…

संभवत: आपके इस अनोखे चिट्ठे पर पहली बार आना हुआ है, और आते ही मुझे कवि सूर्यकान्त "निराला" जी की अनपढ़ी रचना पढ़ने को भी मिली जिसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूँगा। सादर ...अभिनन्दन।।

नई कड़ियाँ :- नेत्रहीनों की भाषा (ब्रेल लिपि) का जनक - लुईस ब्रेल

समर्पित योद्धा कवि का अवसान - डॉ. रवींद्र चतुर्वेदी (पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की पुण्यतिथि पर विशेष)

Unknown ने कहा…

आयुर्वेदा, होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, योगा, लेडीज ब्यूटी तथा मानव शरीर
http://www.jkhealthworld.com/hindi/
आपकी रचना बहुत अच्छी है। Health World यहां पर स्वास्थ्य से संबंधित कई प्रकार की जानकारियां दी गई है। जिसमें आपको सभी प्रकार के पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों तथा वनस्पतियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़ने को मिलेगा। जनकल्याण की भावना से इसे Share करें या आप इसको अपने Blog or Website पर Link करें।

bhawna ने कहा…

देश की एक महान विभूति पर दूसरी महान विभूति के शब्दों को पढ़ रोमांचित हूँ। इस अनुपम कृति को साझा करने का आभार।
सादर,
भावना सक्सैना