रेत ही रेत है, गर्दो-गुबार है,
आज रंजो-गम से रोती बहार है।
गुमशुदा हुए ख्वाबों की खैर हो,
तंगनज़री से ये दिल बेकरार है।
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
छोड़ने को साथ साया बेसब्र हो उठा,
मेरे हमसफ़र से मेरा इतना करार है!
अंधी-तूफाँ ने कर लीं हर चंद कोशिशें,
ताक़त मगर वजूद की बेशुमार है !
तुम्हें मिल भी जाए मांगी हुई मुराद,
मेरा सफर तो मेरा ही गुनहगार है !!
आज रंजो-गम से रोती बहार है।
गुमशुदा हुए ख्वाबों की खैर हो,
तंगनज़री से ये दिल बेकरार है।
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
छोड़ने को साथ साया बेसब्र हो उठा,
मेरे हमसफ़र से मेरा इतना करार है!
अंधी-तूफाँ ने कर लीं हर चंद कोशिशें,
ताक़त मगर वजूद की बेशुमार है !
तुम्हें मिल भी जाए मांगी हुई मुराद,
मेरा सफर तो मेरा ही गुनहगार है !!
13 टिप्पणियां:
हर शेर पर वाह वाह । बहुत खूब कहा है ।
गुमशुदा हुए ख्वाबों की खैर हो,
तंगनज़री से ये दिल बेकरार है।
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
अंधी-तूफाँ ने कर लीं हर चंद कोशिशें,
ताक़त मगर वजूद की बेशुमार है !
तुम्हें मिल भी जाए मांगी हुई मुराद,
मेरा सफर तो मेरा ही गुनहगार है !!
तुम्हें मिल भी जाए मांगी हुई मुराद,
मेरा सफर तो मेरा ही गुनहगार है
--vah!
जनाब आनन्द साहब,
आपके ब्लाग पर पहली हाज़िरी है
ग़ज़ल का हर शेर मानीखेज़ है..
वैसे मुझे ये शेर खास तौर से पसन्द आया
आंधी-तूफाँ ने कर लीं हर चंद कोशिशें,
ताक़त मगर वजूद की बेशुमार है !
हौसले के हर जज्बे को मेरा सलाम
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है....
वाह ...बहुत खूब ....!!
anand bhaiya ,bahut dinon ke baad ya shayad pahli bar aapke blog par hoon
aaj ke haalat par sahityakar se behtar tabsera aur kaun karega aur sahitykar bhi aap jaisa .badhai.
आदरणीय आनन्दवर्धन जी,
हालातों से जूझती हुई जिन्दगी का दस्तखत लगा यह शे’र आपका :-
गुमशुदा हुए ख्वाबों की खैर हो,
तंगनज़री से ये दिल बेकरार है।
सच कहा है कि हौंसला ना हो तो वुजूद रह ही नही सकता, दिल को छू गया यह शे’र :-
अंधी-तूफाँ ने कर लीं हर चंद कोशिशें,
ताक़त मगर वजूद की बेशुमार है !
उम्र की तपन और अनुभव की चमक झलकती है हर अशआर में।
सादर समधर्मा,
मुकेश कुमार तिवारी
आह.. मैं भी अपने गुमशुदा ख्वाबों के लिए फिक्रमंद हूँ.
बहुत खूबसूरत लिखा है. मन के आप पार न उतर कर उसी में अटक कर रहा जाने वाला. हाय एक टीस उठती ही रहेगी.
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
पता नही क्या-क्या लिख देते है आप!!
namaskaar aanand ji
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
har sher laazwaab hai ,waah waah waah aapka nahi jawab hai ,
तुम्हें मिल भी जाए मांगी हुई मुराद,
मेरा सफर तो मेरा ही गुनहगार है !!man ko chhu gayi ,bahut hi shaandar
ये तो नया अंदाज रहा सर।
ये दो पंक्तियां खूब भायी-"दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है" ।
आप सबों का शुक्रिया !
शाहिद जी, मेरे ब्लॉग पर पहली बार पधारने के लिए आभार व्यक्त करता हूँ !
--आनंद.
दोस्त पूछने लगे खैरियत मेरी,
मुझे मेरी खैरियत का इंतजार है।
vaah!
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