[वि-संवादी कविता]
एक दिन तुम्हारे शब्द
ठीक तुम्हारे सामने आ खड़े होंगे !
घूरेंगे तुम्हें,
पूछेंगे सवाल,
कुछ कहते बनेगा तुमसे ?
क्या उत्तर दोगे उन्हें ?
उत्तर के लिए
शब्दों को तौलकर
जोड़ लिया है क्या ??
गैरमुनासिब वक़्त में
आवेश में, और--
क्रोध की गिरफ्त में
वमन किया था
जिन शब्दों का तुमने
वे समयाकाश में
पंक्तिबद्ध, प्रतिबद्ध खड़े हैं
एक अंतराल की प्रतीक्षा में
कि कब --
सघर्षों और तनावों की डोर में
थोड़ी-सी ढील हो
और वे सम्मुख उपस्थित हो जाएँ
तुमसे हिसाब मांगते हुए...
और...
और जीवन की डोर में
ढील तो होनी थी --
हुई;
और वे उगले हुए शब्द
सचमुच आ पहुंचे हैं
ठीक तुम्हारे सामने !
अपने प्रश्नों और
तुम्हारे उत्तरों की समीक्षा के लिए !
पलटवार के लिए !!
मैंने भी अन्तराकाश में
जोड़ लिए हैं कुछ शब्द--
नवीनतम उत्तर के लिए--
दीनता से नहीं,
दृढ़ता से कहूंगा उनसे :--
"कविता एक दिन
जीवन बन जायेगी
कागज़ से उठकर !!"
20 टिप्पणियां:
कविता का जीवन मे प्रवेश ही कविता की सार्थकता है । अच्छी रचना ।
behtrin aanand ji ,aapki rachna padhna to aata hai magar iske upar bolna nahi aata .
कविता एक दिन जीवन बन जायेगी कागज से उठकर ...
कुछ ऐसे ही शब्द मैंने भी रख छोड़े हैं ....
अच्छी रचना
उस दिन कविता जब उठ कर प्रवेश कर जायेगी, उसे अंगीकार करना कितना आसान हो जायेगा न!! सार्थक कविता आनंद जी..
अच्छी कविता.
जब प्रश्नों के अपने ही उत्तर बदलने लगते हैं अच्छे नहीं लगते.
वामन ?
टंकण त्रुटी हो गयी लगता है कृपया 'वमन' बना दें.
दूसरी पंक्ति में एक शब्द छूट गया लगता है - ’सामने'! फिर ’वामन' ’वमन' हो जाय, और अंतिम पंक्ति में 'उठाकर' 'उठकर'हो जाय तो सब कुछ दुरुस्त हो जायेगा !
इन शब्दों पर खयाल इसलिये कि छोटी-सी टंकण-त्रुटि से कुछ अजीब सा लगने लगता है पढ़ते हुए !
बेहतरीन कविता ! आभार ।
आनंद भैया ,ऐसे भाव और इतने सुंदर शब्दों के साथ
आप के लेखन की ही विशेषता है ,बहुत सुन्दर और
अतीत में कहे हुए शब्दों पर चिन्तन कर्ने को विवश करती रचना ,बधाई हो.
भैया आज कल मेरा ब्लॉग आप की दुआओं से महरूम है ,वक़्त निकाल कर तशरीफ़ लाइये , धन्यवाद
Bahut sunder rachana........
आवेश में, और--
क्रोध की गिरफ्त में
वामन किया था
जिन शब्दों का तुमने
वे समयाकाश में
पंक्तिबद्ध, प्रतिबद्ध खड़े हैं
hum dekhate hai ki pratikriya me doosaron ke aise hee shavd sath jud apana ek alag samooh bana lete hai .
बेचैन आत्मा जी, हिमांशुजी,
त्रुटियों की और ध्यान दिलाने के लिए आभारी हूँ ! स्पेस मारकर हिंदी लिखने का अभ्यास नहीं है ! कल देर रात में कविता पोस्ट की, आँखें चुंधिया रहीं थीं, वैसे अब बूढा भी हो चला न ! निर्देश का पलान कर चुका, देख लें !
इस्मत, ब्लॉग पर तुम्हारी कोई पोस्ट दिखी नहीं, संभव है, ओवर लुक हो गई हो ! इधर थोड़ी व्यस्तता भी रही है ! शाम तक आया जाता हूँ तुम्हारी पोस्ट पर !
आप सबों का आभार !!
--आ.
कविता एक दिन जीवन बन जायेगी कागज से उठकर जीवन बन जायेगी---- बहुत सुन्दर कल्पना है । धन्यवाद
सौभाग्य ! अच्छा लेखक-जागरूक पाठक. जय हो.
आवेश में, और--
क्रोध की गिरफ्त में
वमन किया था
जिन शब्दों का तुमने
वे समयाकाश में
पंक्तिबद्ध, प्रतिबद्ध खड़े हैं
कई सवाल खड़े करती...और अंतर को जगाती एक उत्कृष्ट रचना
कि कब --
सघर्षों और तनावों की डोर में
थोड़ी-सी ढील हो
और वे सम्मुख उपस्थित हो जाएँ
तुमसे हिसाब मांगते हुए...
जब भी आपकी कविता पढती हूं, तभी सोच में पड जाती हूं कि चन्द शब्दों में इतनी बडी-बडी बातें, इतने गम्भीर भाव कैसे भर पाते हैं? अतिसुन्दर.
gazab ki prastuti aur shabd sanyojan........ek ek shabd bol raha hai.
आपकी कवितायें हमेशा मन में कुछ पैदा कर देती हैं....
एक दिन तुम्हारे शब्द
ठीक तुम्हारे सामने आ खड़े होंगे !
घूरेंगे तुम्हें,
पूछेंगे सवाल,
कुछ कहते बनेगा तुमसे ?
aur
कविता एक दिन जीवन बन जायेगी कागज से उठकर ...
कविता का प्रारंभ ओर अंत दोनों ही बेहतरीन है । बहुत अच्छी लगी यह कविता ..
कवि का जीवन और कविता एक हो इतनी ही प्रामाणिक होनी चाहिए रचना । अन्यथा खोखले शब्द ही रह जाते हैं जीवन में !
बधाई ऐसे उद्गागारों के लिए ।
उत्तर के लिए
शब्दों को तौलकर
जोड़ लिया है क्या ??
आनन् जी कागच से उठकर जो नज़्म उतरी है ...सीधे दिल पर वार करती है ......लगता है किसी अपने ने बहुत गहरी चोट दी है .....!!
और वे उगले हुए शब्द
सचमुच आ पहुंचे हैं
ठीक तुम्हारे सामने !
सही कहा आपने ....आपने सटीक शब्दों से सही राह दिखा दी ....वक़्त अब भी उसके हाथ में है ....फैसला भी उसके हाथ में .....
बहुत पहले लिखी एक नज़्म के भाव कुछ ऐसे ही थे ......
देना होगा तुझे भी फर्द-ए-अमल
खुदा के घर में है अजाब और सवाब सभी होता
फर्द-ए-अमल -कर्मों का ब्यौरा
अजाब और सवाब - अच्छे बुरे का फल
अद्भुत कविता...कविता खुद ही वो सवाल करती है जो किसी वर्तमान मे सबसे जरूरी मगर उपेक्षणीय होते हैं..और फिर खुद उनका जवाब बन जाती है!!..सच, अच्छा जीवन कविता बन कर समय की मुश्किलों का जवाब देता है तो अच्छी कविता जीवन मे ढल कर उन जवाबों को सहेजने की कोशिश करती है..
और....
जीवन डोर में ढील तो होनी ही थी
कविता
एक दिन जीवन बन जाएगी
कागज़ से उठ कर
जीवन-दर्शन से साक्षात्कार करवाते हुए आपके
अमूल्य विचार स्वयं काव्य का रूप ले कर
हम सब से बातें करने को आतुर जान पड़ते हैं
अंतर-द्वन्द का चित्रण
खुद अपने आप से मिल पाने की कसमसाहट
और न जाने क्या-क्या लिख लिया गया है ....
एक शानदार ,
प्रभावशाली प्रस्तुति
एक नायाब खज़ाना .....
अभिवादन .
निर्मलाजी, सागरजी, रश्मिजी, वंदना द्वय, अनिलकान्तजी, अर्कजेशजी, हीरजी, अपूर्वजी और मुफलिसजी,
आप सबों के महत्वपूर्ण मंतव्यों का शुक्रिया !
रश्मि रवीजाजी, आपकी ब्लोगेर मित्रता का आभार मानता हूँ !
अभिवादन सहित -- आ.
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