सोमवार, 3 नवंबर 2014

दो-दो फुलझड़ियाँ...


दीवाली की रात बिताकर
प्रात-भ्रमण पर निकला घर से
बहुत सबेरे,
अंधियारा तो कहीं नहीं था,
फिर भी किरणों का पता नहीं था;
चलते-चलते देखा मैंने
जश्न अनूठा--
नाकाम पटाखों,
दगे पटाखों,
छुर-छुर करके बुझे पटाखों
और रहे अधजले पटाखों को
चुनते देखा सड़क-किनारे
उन निर्धन बच्चों को मैंने
जिन्हें नहीं मिले थे
रात पटाखे...!
हसरत की देखीं तेज़ हवाएँ
उन चेहरों पर
जिन पर कल थी गहरी मायूसी
आज मिली थी उन्हें ख़ुशी,
आनंदित वे झूम रहे थे,
चौबारे के इस घर से
उस घर तक वे घूम रहे थे !
कुछ बच्चे थे,
जो खूब जतन से,
नाकाम पटाखों से
निचोड़ रहे बारूद
प्लास्टिक की थैली में
और इकट्ठा करते जाते दौड़-दौड़कर
दीये, चकरी, मोमबत्तियाँ,
बम-पटाखे और फुलझड़ियाँ !
अलग खड़ा एक छोटा बच्चा
फुलझड़ियों की तीली से
राख पीटकर झाड़ रहा था
और तीलियाँ अपनी जेबों में डाल रहा था...!
उस अबोध के पास गया मैं,
पूछा मैंने--"क्या करोगे इस तीली का,
मुझे बताओ, मैं भी तो जानूँ!"
वह तो मेरा स्वर सुनकर ही
चौंक पड़ा था,
जैसे चोरी पकड़ी जाती,
वैसे वह भयभीत खड़ा था...!
प्रश्न दुबारा सुनकर वह तो
सरपट भागा,
जो मेरे मन का कौतूहल था
और तीव्रता से वह जागा!
धीरे-धीरे चला गया मैं
बच्चों की दूजी टोली तक
जो छुर-छुर करके बुझे पटाखों की
तह में जाकर खुरचते थे बारूद,
मैंने पूछा--"भई, क्या करते हो?
जो सम्पदा तुम इतने श्रम से जुटा रहे हो
उससे क्या होगा...?"
एक साहसी बालक था उनमें
आगे आया, बोला मुझसे--
"हम इस बारूद की
छोटी-छोटी पुड़िया बनाएंगे
और उन्हें फुलझड़ियों की तीली पर लटकाकर
उनमें आग लगाएंगे,
अधजली मोमबत्तियाँ
हम फिर से जलाएंगे
कल तो कोठीवालों की दीवाली थी,
थोड़ी दीवाली हम आज मनाएंगे..!"
इतना कह बच्चों की टोली
हुर्रे-हुर्रे कहती-कहती
भाग चली गलबहियां डाले
मैं हैरत में पड़ा रहा पलकें झपकाते...!
दीवाली के दिन भी क्या हम
उन निर्धन बच्चों को
नहीं दे सके थोड़ी खुशियाँ ?
कुछ अधिक नहीं तो फिर भी भाई,
दो-दो फुलझड़ियाँ...!!

5 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

वंदनाजी, आप इस कविता को न देखतीं तो मेरी यह पोस्ट टिप्पणी-विहीन रह जाती...! आभार...!

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

अत्यंत सुंदर और मार्मिक रचना
सोये हुए मानस को जगाती हुई और ये याद दिलाती हुई कि
इनसान हो तो इनसान बनो भी

इस्मत ज़ैदी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
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