रविवार, 18 फ़रवरी 2018

नहीं तो शामत सिर पर आई...!

[एक अनावश्यक कविता]

ये जो पत्नियाँ होती हैं न,
मुझे लगता है,
कठिन सामग्रियाँ होती हैं;
इसी वजह से मैं
अपनी गृहलक्ष्मी को
'तथाकथित पत्नी' कहता हूँ ।
लोग कहते हैं, इसलिए 'पत्नी',
अन्यथा वह तो हवा की एक
ख़ुशनुमां बयार-सी है
जो मेरे साथ-साथ चलती है,
मेरे मिज़ाज के हिसाब से
अपना रंग बदलती है।

जनाब! यह भी आसान
कलाबाज़ी नहीं है
कि मुस्कान देखकर
मुख-कमल खिल उठे
या बिगड़े हों मेरे तेवर
तो मुख-चन्द्र मलिन हो जाये;
जैसे पूर्ण चन्द्र पर आ जाता है
टुकड़ा-टुकड़ा काला बादल,
लेकिन यह दृश्य तभी तक स्थिर
या गतिमान होता है,
जबतक घर में कोई विकट गतिरोध नहीं होता
कोई भी अपना आपा पूरी तरह नहीं खोता!

हुई असावधानी जरा-सी
घटना घटी बड़ी-सी,
और ऐसे में--
जब कभी उनका भेजा पलटता है
हवाओं का रंग बदलता है,
सुरमई शाम भी
स्याह रात में ढल जाती है
जो सोना चाहूँ तो
नींद नहीं आती है।

स्वाभिमान का दीपक बुझाकर
आँखों में नकली नमी का सुरमा लगाकर
करनी पड़ती है मनुहार मुझे
फिर भी दी जाती है
लानत और फटकार मुझे।...

सब सहना होता है मुझको
ताकि अगली तिमाही तक
शांति से चलता रहे मेरा शासन,
मेरी भाव-भंगिमा और
भृकुटी के संचालन से
रहे काँपता घर का आँगन ।...

भई, सीधी-सी बात है
ये तनी हुई अभिमानी गर्दन भी
ठीक वहीं पर झुकती है
जहाँ शिवाला है कोई
या शक्तिपीठ की ड्योढ़ी है।
जग्गजननि के सम्मुख क्या
कोई तनकर खड़ा रह सकता है
जगत्-प्रवाह में बहता तिनका
कब तक थिर रह सकता है?
इन सिद्धपीठों पर जाकर
जो बावला ऐंठा ही रह जाता है,
वह जीवन के महासमर में
हतबुद्ध खड़ा रह जाता है।...

इन फूलों का क्या है बंधु,
जंगल-जंगल खिल जाते हैं,
उपवन में वे ही तो आखिर,
नया गुलाब ले आते हैं।
नतशिर होना होता है भाई
नहीं तो शामत सिर पर आई...!..

[चित्र : हमारा, : व्यथा बगल के किरायेदार की]
--आनन्द, 19-12-2017

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-02-2017) को "सेमल ने ऋतुराज सजाया" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

पिसाई दो पाटों से ही होती है भले ही एक पाट स्थिर रहता है

ये भी बहुत खूब रही ..

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया