जब मेरी चेतना पर
तंद्रा छाने लगती है,
तुम करती हो सवाल...
नहीं होता मुझसे
दुनिया का हिसाब-किताब,
नहीं आती मुझे
अंकों की ठीक-ठीक गणना;
तुम फिर देती हो नसीहतें--
नहीं आता मुझे
बताई हुई डगर पर,
नाक की सीध चलना...
मैं खीझता हूँ और--
नहीं आती मुझे
ठीक-ठाक नींद...
रात भर !
नींद, जो सुबह
तरोताजा होकर जागने के लिए
बेहद ज़रूरी है,
उसे तुम्हारे सवालों से
ठेस पहुँचती है और
अधखुली पलकें लिए
जागी रह जाती है--
लम्बी स्याह रात !
तभी तुम--
अपनी नर्म हथेलियों का
सुर्ख मोती
मेरे हाथ में रखती हो,
मेरे सफ़ेद हो आये केशों में
फिराती हो अपनी नाज़ुक उंगलियाँ
और सांत्वना देते हुए कहती हो --
'खैर, कोई बात नहीं ...
याद नहीं रहा, तो छोडो ...
जाने दो...'
मेरे वक्तव्य
अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये
तुम्हारी प्रभा-दीर्घा में
दुम हिलाते नज़र हैं !
मैं तुम्हे कैसे समझाऊं--
व्यथा कहने से नहीं,
सहने से कम होती है !
मुझे मौन देखकर
बड़े स्नेह से
और थोडी आजिजी से भी
तुम कहती हो--
'अच्छा भई, सो जाओ !'
जैसे तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा में
ठहरी हुई है--
मेरी नींद !!
11 टिप्पणियां:
अपनी ही लय में बराबर गुजरात हुई कविता , अंत तक आते आते फिर से पढने की इच्छा जगाती है. ये नींद, उम्र का भार तो नहीं लगती मुझे किन्तु कई गैर जरूरी सवालों को इत्मीनाह से हल कर पाने की चाह के रूप में दिखाई पड़ती है.
गुजरती हुई शब्द गुजरात हो गया है क्षमा करें .
वाह!!एक्दम अलग मूड की रचना.खीझ, समझौता और उलाहना सब कुछ.बहुत सुन्दर.
बेहतरीन रचना!
बधाई !
इस खूबसूरत रचना के लिए मेरे पास एक ही शब्द है- "लाजवाब"
शानदार कविता, भावों, अहसासों की अनोखी अभिव्यक्ति
बधाई.
मन नींद की शांत झील में तल पर पड़ा रहना चाहता है और जीवन का रोज़मर्रापन अपनी लहरों से ऊपर उठाना चाहता है.... और फिर हथेलियों का सुर्ख मोती सारा निरर्थक भार पोंछ लेता है.
मैं शायद कविता को कविता की तरह समझ न भी पाऊं तो भी इस कविता को एक पाठक के लिए नायाब तोहफा ज़रूर मानता हूँ.
आभार ओझा जी.
kishore ji ki baat mujhe bilkul sahi lagi .bahut shaandar .
बहुत ही सुन्दर रचना. आभार.
बहुत-बहुत पसंद आई कविता !
आप कविता कोश में हैं की नहीं ? यदि नहीं हैं तो वहां अपना उपस्थिति दर्ज जरूर करिए |
आप सभी बंधुओं के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ !
अर्कजेशजी, यह बताएं की ^कविता कोष' क्या है ?
वंदनाजी, इस्मत को बता दें कि मुझे जन्माष्टमी के दिन मिल गयी थी रेशम की डोरियाँ , जब भी आपकी बात हो !
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