[भोजपुरी के दो गीत]
{वर्ष तो याद नहीं रहा, लेकिन दस-ग्यारह साल पहले बिहार शिक्षा परियोजना, पटना ने 'मुनिया बेटी पढ़ती जाए' नाम की एक कार्यशाला का आयोजन किया था, जिसमे बिहार की आंचलिक भाषाओं में ऐसे गीत लिखे गए थे, जो ट्राइबल बेल्ट की गाय-बकरी चरानेवाली, गोबर चुननेवाली और घरों में काम करनेवाली छोटी बच्चियों को पढ़ने-लिखने की प्रेरणा दें। उस कार्यशाला में मैंने भी भाग लिया था और भोजपुरी में दो गीत लिखे थे। कार्यशाला में लिखे गए गीतों में से चुने गए गीतों को स्वरबद्ध कर हज़ारों की संख्या में ऑडियो कैसेट बानाया गया था और सुदूर गाँव-देहात में उनका वितरण किया गया था। कैसेट के 'ए' साइड का पहला गीत और 'बी' साइड का दूसरा गीत मेरा था। कैसेट के साथ मुद्रित गीतों की एक बुकलेट भी रखी गयी थी। इस बार पटना-प्रवास में वह मुझे मिल गयी अचानक। सोचता हूँ, उन दोनों गीतों को आपके सम्मुख भी रख दूं--आ।}
(१)
खूब तोर नाम होई, देखी दुनिया रे,
ककहरा के पढ़े-लिखे चल मुनिया रे !
भोरे-सांझे, रात-दिन अउरु दुपहरिया,
पढला बिना रे लागी सगरो अन्हरिया,
ठगी लीही तोहरा के सारी दुनिया रे ! ककहरा के...
गोबरो तूं पथलू, चरवलू बकरिया,
बीति जाई जिनगी चलावते चकरिया ,
मनवां के माने रहि जाई रनिया रे ! ककहरा के...
दुखवा-दरिदरा के बीति जाई दिनवां,
सांच-सांच होई तोर सब रे सपनवां,
पूरी जाई मनसा तोहार मुनिया रे ! ककहरा के...
(२)
गूरुजी दीहें सब गियान हो, किरिनियाँ लउकल,
पढ़ी-लिखी बनब बिदवान हो, किरिनिया लउकल !
अमवां के फेंड तरे माई पेठ्व्ली तनि पढ़ी-लिखी आव ,
बाबूजी कहले हमरा जा बेटी पढ़ के आपन ग्यान बढाव ,
ना होई जिनगी जियान हो, किरिनिया लउकल... !
खडिया-सिलेट से हम पढि के ककहरा, माई ग्यान कमाइब ,
सिच्छा प्रसार के जे बह तारी गंगाजी, हम खूब नहाइब ,
घरवो के करब कुछो काम हो, किरिनिया लउकल.... !
टोला-मोहल्ला अउरु सगरो जवार में ई लहर चलल बा,
घर-घर के मुनियाँ बेटी, छोटकी बबुनिया सभे पढ़े लगल बा,
जानता ई दुनियाँ-जहान हो, किरिनियाँ लउकल .... !!
7 टिप्पणियां:
अरे वाह ये तो बहुत बढिया गीत हैं. इन्हें ब्लॉग पर सुनवा ही दीजिये.
आनंद भैया,
मज़ा आ गया इन गीतों को पढ़ कर ,बहुत अपने से लगे दोनों गीत ,बस एक दो शब्दों के मतलब नहीं समझ पाई लेकिन फिर भी जितना समझ में आया बहुत अच्छा लगा .
वाह! बहुत दिनों से आपके पोस्ट को याद कर रहा था..अच्छा लगा.
Jitna samajh payi,bahut achha laga..is bhashaa ka apna alag naad hai,sangeet hai..jo is deshki mittee se upjta hai..
बहुत दिनों बाद .........................
प्रणाम आपको !!
वंदनाजी,
ऑडियो के लिए तो कैसेट भी खोजना होगा; लेकिन मैं तो अब दिल्ली में हूँ ! क्या करूँ ?
--आ.
बहुत दिनों बाद भोजपुरी मी मिठास का एहसास हुआ आनन्द वर्धन ओझा जी और भी इसी तरह कभी कभी रस की फुहार कर दिया करें.
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