।। बाबूजी की चरण-पादुका, चश्मा-चट्टी ।।
"मैं ले आया हूँ गृह-प्रदेश से
[पूज्य पिताजी के नाम एक भावुकतापूर्ण काव्य-पत्र]
बाबूजी की चरण-पादुका, चश्मा-चट्टी!
खोज रहा पगचिह्न
डाल अपनी उँगली
जूते में,
हाँ, मुझे मिली है पगचिन्हों की
गहरी छाप, जिसे बारम्बार
कांपती उँगलियों से
छूता हूँ, सहलाता हूँ,
फिर मस्तक से लगाता हूँ,
करके पॉलिश आज
उनकी जूती चमकाता हूँ,
सच कहता हूँ,
मेरी आँखें धुँधला जाती हैं,
कितनी यादें मेरे मन में
उमड़ी आती हैं…!
वे कितने शुभ्र चरण थे
जो अथक यात्री-से
आजीवन चलते आये थे,
पद से कर आघात
पादुका दलते आये थे,
कहाँ गए वे चरण.… ?
कहाँ गए वे चरण
जिनका मैं वंदन करता था,
जिनकी रज को
मैं मस्तक का चन्दन कहता था…?
जान रहा हूँ,
पूज्य चरण वे नहीं मिलेंगे,
अब वरद हस्त
सिर पर रखने को नहीं उठेंगे।
वो चट्टी की खट-पट घर में
सुनने को भी नहीं मिलेगी,
कोई कलिका
हृद-प्रदेश में नहीं खिलेगी।
ऋषि-तपस्वी की कुटिया में
जो गूंजा करती थी,
उसी नाद-सी कर्ण-मधुर झनकार
विलुप्त हो गई इस जीवन से,
खोज कहाँ से लाऊंगा वह स्वराघात
किस जन-जीवन से, किस वन से…?
धो-पोंछ कर साफ़ किया है उनका चश्मा
सम्मुख रखकर देख रहा हूँ निर्निमेष,
चुभता-सा कुछ लगता मन में,
कोई बाण से बींध रहा हो
जैसे मेरा ह्रदय-प्रदेश...!
वहाँ भी अतल-तल तक बेधती
आँखें नहीं हैं,
झील-सी प्रशांति समेटे
मर्मबेधी, पारदर्शी आँखें नहीं हैं !
कौन जाने कहाँ छुप गईं आँखें,
क्यों तारे-सी चमकती बुझ गईं आखें ?
पावर के शीशे के पार देखने की
जब-जब करता हूँ मैं कोशिश
बस, धुँधला-सा जैसे सबकुछ हो जाता है,
स्वप्न-भंग पर जैसे
सपना खो जाता है!
जानता हूँ,
यही जीवन-सत्य है, फिर भी ,
मन के प्रश्न बहुत अकुलाते हैं,
स्मृतियों के एक भँवर में
हम तो डूबे जाते हैं…!
आप नहीं हैं पास हमारे
बरसों-बरस के बाद, सत्य
स्वीकार किया मैंने,
इस चरण-पादुका, चट्टी पर
अधिकार किया मैंने…!
जब तक जीवन है,
इस पर मैं तो पॉलिश करता जाऊंगा
और सँजोये रखूंगा मन में
स्मृतियाँ--मधुर-मनोहर, मीठी-खट्टी!
मैं ले आया हूँ गृह-प्रदेश से
बाबूजी की चरण-पादुका, चश्मा-चट्टी!!"...
(--आनन्द, 2 दिसम्बर.)
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-12-2017) को "दिसम्बर लाता है नया साल" (चर्चा अंक-2806) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
पूज्य पिता जी को नमन।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमन
सुन्दर कविता. नमन.
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