रविवार, 2 अगस्त 2009

समवेत स्वर में...


नक्कारखाने में
तूती की आवाज़ कोई नहीं सुनता !

उठो,
अपनी आवाज़ बुलंद करो--
एक लम्बी लडाई के लिए
कमर कसो,
पंख खोलो ,
बल को तौलो
जो मांगो, लो--
बोलो तो !

इस धर्म-युद्ध में,
महासमर में
विचार-शस्त्र के
जितने पिटारे बंद पड़े हैं
सबको खोलो;
अधिकारों और प्राप्तव्य के नाम पर
रेवारियां बाँट रहे
इस तंत्र की आँखें खोलो--
करो सिंहनाद --
समवेत स्वर में !!

9 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

करो सिंहनाद --
समवेत स्वर में !!

बेहतरीन रचना,
बधाई!

ओम आर्य ने कहा…

ITS REALLY GOOD...Ojha Ji

Om

ज्योति सिंह ने कहा…

aap to laazwaab hai ,behatrin .

Arkjesh ने कहा…

सच है, एक समवेत स्वर की आवश्यकता है । जिससे बहरों को सुनाई पड सके ।

समवेत स्वर कि खत्म हो सिलसिला चन्द लोगॊं के स्वार्थ के लिये धरती को नर्क बनाने का ।

बुरे लोग इकट्ठे हो जाते हैं, पर अच्छे लोग नहीं हो पाते ।

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

आनन्दवर्धन जी,

आपकी कृपा और आशीर्वाद बना रहे है।
प्रस्तुत कविता समवेत स्वर में... को पढ़्ने के बाद मन जो विचार उठें उन्हें जस-का-तस पेश कर रहा हूँ। कविता अपने मक़सद में पूरी तरह सफल है दिमाग में जाते ही हलचल मचा देती है :-

स्वर,
समवेत हों करें अनुनाद
तो कोई नक्करखाना
रोक नही सकता गूंज को
और अनुगूंज बदल कर प्रतिध्वनियों में
नींद हराम कर देंगी
सोये पड़े तंत्र की

अपनी बिटिया वाली कविता जरूर खोजियेगा डायरी में और हमें पढ़वाईयेगा। बाई-द-वे आपने कहा है कि जब पटना जाऊंगा, तो क्या इस वक्त कहीं और हैं आप?

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कल चंद पंक्तियां दिमाग में आ रहीं थीं,लेकिन निराशावादी थीं, मेरे स्वभाव के विपरीत,लेकिन आज आपने कुछ उसी भाव की लेकिन बहुत ज़ोरदार और आशावादी कविता से हममें जोश भर दिया है.मेरी पंक्तियां थीं-
"बहरे हुए हैं कर्णधार
अब सदा सुनेगा कौन?
गूँगी हुई है आज जनता
अब शिकायत करेगा कौन?"

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

करो सिंहनाद --
समवेत स्वर में !!

पर समवेत स्वर मिल कहाँ पाते हैं?

एक- एक कर सब अपनी कीमत लेकर जुदा होते जाते हैं, और हम आप जैसे जो कीमत लेना नहीं जानते, तोड़ दिए जाते हैं.....हर तरह से. चल रहे कलयुग का शायद यही सच है.

वैसे मन को इस कविता ने अनुनादित जरूर किया, कारन की सामान आवृत्ती पर थी.

बधाई!.. बधाई!!... बधाई!!! सुप्त, स्वार्थी दुनिया में अलख जगाने की.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

आप सबों का आभारी हूँ ! आ.