शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

गुलाब याद आया...


[
गुलाब-
दिवस पर]

मुझको गुल से गुलाब याद आया,
वो एक हसीन ख्वाब याद आया!

लोग तरसते रहे सूरत के लिए,
मुझको मेरा चेहरा जनाब याद आया!

तुझको दिल दे के बढ़ाया था गुलाब,
आज बारहां उनका जवाब याद आया!

आशियाने में रहा जब सदियों अंधेरा,
वो गुमशुदा-सा आफ़ताब याद आया!

हाय, किसके हिस्से का गुल मेरे हाथ था ,
चमन की बुलबुलों का हिसाब याद आया!

रुक गया हूँ तो ठहरी रहेगी मंज़िल भी,
आज हमसफ़र तू बेहिसाब याद आया...!

गफलत हुई हमसे कि दिल पहले दिया,
फिर उसके बाद हमको गुलाब याद आया!

2 टिप्‍पणियां:

ज्योति सिंह ने कहा…

रुक गया हूँ तो ठहरी रहेगी मंज़िल भी,
आज हमसफ़र तू बेहिसाब याद आया...!
bahut hi sundar

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

ज्योतिजी,
बहुत दिनों बाद आपकी प्रतिक्रया मिली. आभार...! वैसे, मैं भी अब बहुत-बहुत दिनों पर ब्लॉग पर आता हूँ...!