जाने कब आओगे तुम...?
कुछ आहटेंतकलीफों केखुले दरवाज़े पर देती हैं दस्तक,बार-बार देखता हूँ उधर;वहां कोई नहीं होतातुम भी नहीं,तुम्हारा वजूद भी नहीं...होती है सिर्फ़दरवाजों की भड़-भड़शायद ये हवाएंले आयी हैं --तुम्हारी यादें !जाने कब बंद होंगेतकलीफों केये खुले द्वार;इन पर सांकल चढानेजाने कब आओगे--तुम !!
15 टिप्पणियां:
भावनात्मक संवेदना पूर्ण खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।
बढ़िया लिखा है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
"जाने कब बंद होंगे
तकलीफों के
ये खुले द्वार;
इन पर सांकल चढाने
जाने कब आओगे--
तुम !!"
अत्यन्त सुंदर रचना! आभार ।
ek bahut hi samvedansheel rachna likhi hai.......badhayi
दरवाजों की भड़-भड़
शायद ये हवाएं
ले आयी हैं --
तुम्हारी यादें !
bahut sundar
जाने कब बंद होंगे
तकलीफों के
ये खुले द्वार;
बढ़िया सरल-सुबोध शब्दों के प्रयोग से गहरी भावव्यक्ति. प्रयोग पुर्णतः सफल रहा.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
छोटे में स्मृतियों और साझेपन के विराट भाव समेटे.
सादर.
bahut sundar aanand ji .
कुछ लम्हे, ख़ास लोगों के बिना जीवित नहीं होते.
बहुत खूब !
क्या बात है सर जी..एक नया अंदाज..एक नया तेवर..बहुत खूब..इस नज़्म की शिद्दत, इसकी बेचैनी, और इसमे छुपी उम्मीद के शाश्वत्य की तारीफ़ मे कही कोई भे बात सूरज को दिया दिखाना हो होगा..बेसब्री से रहता है आपकी हर पोस्ट का इंतजार..
एक विचित्र अनुभव और भावोद्वेग को आप सबों ने इतना सराहा है कि मैं कृत-कृत्य हुआ जाता हूँ. सत्यतः बहुत-बहुत आभारी हूँ आप सबों का ! विनीत--आ.
कुछ चीजे ऐसी होती है कि जिनका इंतजार ताउम्र रहती है ......और इंतजार जिसमे एक कशिश और खुमार दोनो ही भरपूर होता है .....बहुत ही खुबसूरत भाव से लबरेज़ रचना.
सादर
ओम
कुछ चीजे ऐसी होती है कि जिनका इंतजार ताउम्र रहती है ......और इंतजार जिसमे एक कशिश और खुमार दोनो ही भरपूर होता है .....बहुत ही खुबसूरत भाव से लबरेज़ रचना.
सादर
ओम
जाने कब बंद होंगे
तकलीफों के
ये खुले द्वार;
इन पर सांकल चढाने
जाने कब आओगे--
तुम !!
aayega,
wo jaroor,
ek na ek din,
saankal chadhane,
in khule dwaron par,
aur fir,
wo pal,
bhul nahi paaogey kabhi--
tum!!
bahut sundar !
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