शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

तेरी मधुर-मधुर मुस्कान...


[ऋतज के पहले जन्मदिन पर]
[हैदराबाद-प्रवास ; २८-१०-२००९]

तन-मन की कंथा हर लेती,
अनिर्वचनीय आनंद जो देती,
मनमोहक, मनभावन है, तेरी --
चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !

पहली सालगिरह पर आया,
प्रीत-स्नेह की गठरी लाया,
लेकिन मैंने तुझसे जो पाया
किन शब्दों में व्यक्त करूँ मैं--
लुप्त हुआ सब मेरा ज्ञान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

दो हाथों-घुटनों से चलकर,
आ जाता तू पास मचलकर,
अपने कोमल हाथों से मुझको --
दे जाता आनंद महान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

माँ की गोदी में इठलाता है,
जाने क्या-क्या तू गाता है,
एक शब्द जो कह पाता है--
सुन खड़े हुए 'पापा' के कान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

'भौं-भौं' अंकल,'कालू आंटी',
प्यारी लगती मन्दिर की घंटी,

जिसे बजाकर तू कहता है--
मम्मी को भजने को नाम !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

सोकर जब तू उठ जाता है,
आँखों से आंसू बरसाता है,
देख नयन-कोरों पे मोती--
निकली जाती मेरी जान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

दो दिन बाद चला जाउंगा,
मीठी यादें ले जाऊँगा,
भूल नहीं पाऊंगा क्षण-भर--
तेरा चंचल नर्तन-गान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

14 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

आपकी रचना से परमानन्द की अभिव्यक्ति ही नही बल्कि इसमे डुबने का एहसास हो जाता है नन्ही कोपले होती ही ऐसी है जो जीवन को परमानन्द तक पहुंचाती है..........आपकी रचना हमेशा से ही बनावट और बुनावट से उत्कृष्ट होती है !!!

सादर

ओम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ऋतज के पहले जन्मदिन पर शुभकामनाएँ!
इस अवसर पर सुन्दर कविता के लिए बधाई!

अपूर्व ने कहा…

तुलसीदास जी याद आये
ठुमकि चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ!!

अगर दुनिया मे कोई सम्पदा है तो वो है..

तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

और भौं-भौं अंकल के सबोधन पे हंसी नही रुकती
हमारी भी बधाइयाँ जन्मदिन की और अपने दादा के लिये गर्वपूर्ण भावी जीवन की शुभकामनाओं के साथ

अनिल कान्त ने कहा…

आपकी रचना में तो हम डूब जाते हैं...
सुखद आनंद मिलता है

ऋतज के पहले जन्मदिन पर शुभकामनाएँ!

vandana gupta ने कहा…

ritaz ke janamdin ki shubhkamnayein.

sare ahsaas ujaagar ho gaye hain aapki kavita mein.

sanjay vyas ने कहा…

पूरा स्नेह और दुलार उड़ेल दिया है इसमें.बाल-लीलाओं को देख कर जो भाव उपजते हैं, मैं कहूँगा वे यूँ के यूँ सुरक्षित रख दियें हैं आपने इसमें.
आनंद आया.

अर्कजेश ने कहा…

कविता ऐसी है की हमें भी वह एहसास हो गया ,जिसमें डूबकर आपने यह लिखी है ।

ज्योति सिंह ने कहा…

बच्चो की लीलाये अद्भुत होती ,अपने सारे दुःख हर लेती है .हर दुःख से परे सभी चिन्ताओ से दूर ,आनंद के इस उपवन में खुशबू असीम ,अपार .यह अद्भुत संसार .निश्छल धारा बहती है लिए गंगा की धार .यह ऐसी रचना है जो मन को स्पर्श करती है .बहुत सुन्दर रचना ,ऋतज को ढेर सारा प्यार,char dant ki muskaan liye ritaj bahut pyaara lag raha hai .

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

ये न सोचें कि जन्मदिन निकल जाने के बाद आई तो शुभकामनायें किस काम कीं? हमने तो उस दिन भी खूब शुभकामनायें दीं थीं और आज भी दे रहे हैं. लिये जाइये चार दन्त का आनंद.....सुन्दर कविता.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सोकर जब तू उठ जाता है,
आँखों से आंसू बरसाता है,
देख नयन-कोरों पे मोती--
निकली जाती मेरी जान !
तेरी चार दंत की मधुर-मधुर मुस्कान !!

कहते हैं बच्चे में भगवान् बसता है ....आपकी वंदना ईश्वर पूजन से कम नहीं ....मुस्कान पर इतनी सुंदर रचना शायद ही पहले किसी ने लिखी हो ......पर अंतिम पंक्तियों ने थोडा ग़मगीन कर दिया ....!!

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

हम भी इस मुस्कान पे कुर्बान हुए..नज़र उतार लेना.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

ऋतज को उसके पहले जन्म-दिन पर आप सबों ने आशीष दिया, आभारी हूँ ! यह ऋतज का सौभाग्य है कि उसे इतने लोगों का प्यार और आशीर्वाद मिला है !
हृदेशजी, मेरी ब्लॉग-मित्रता स्वीकार करने का शुक्रिया ! आप मेरे ब्लॉग पर आये और मेरे नवासे को अपना स्नेह दे गए, आभारी हूँ ! इतना और स्पष्ट करें कि आप 'हृदेश' हैं या 'हृदयेश' ? अंग्रेजी के हर्फों से यह साफ नहीं होता ! अंग्रेजी ने तो राम को 'रामा' और योग को 'योगा' कर ही दिया है ! चाहता हूँ, आपका नाम शुद्ध-शुद्ध जान लूँ !!
सप्रीत--आ.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

रू.च. शास्त्री मयंकजी,
आपने अपने ब्लॉग पर क्या कर रखा है ? वह खुलता ही नहीं है. न मैं आपकी रचनाएँ पढ़ पा रहा हूँ, न अपने मंतव्य आपको प्रेषित कर पा रहा हूँ . कुछ कीजिये कि आपकी रचनाएँ मैं पढ़ सकूँ !
ऋतज को आशीर्वाद देने के लिए आभारी हूँ.
सादर--आ.

Unknown ने कहा…

teri madhur madhur muskan eik aisi kavita hai jo shayad sabke man ko kahin na kahin chhoo jaati hai....