मैं प्रकाश में चला अकेला,
यह जग भी सपनों का मेला,
दृश्य अपरिमित, स्वप्न अनोखे,
किसको देखें, आँख चुरा लें !
शब्दों में सपने लिख डालें !!
बुढ़िया कात रही थी सूत,
सबको दिखा रही थी भूत,
उसने व्यंजन बहुत बनाया,
सब बच्चों को बुला खिलाया !
बहुत मिले तो थोडा खा लें !
शब्दों में सपने...
स्वप्न बुरे भी हो सकते हैं,
मन में विष को बो सकते हैं,
दुःख में सब कुछ खो सकते हैं,
सुख में भी तो रो सकते है ?
दुह्स्वप्नों का बोझ न पालें !
शब्दों में सपने...
आखें मूंदो, मत कुछ बोलो,
अंतर्मन की आँखें खोलो,
पंख पसारो, नभ में डोलो,
सागर-तट से नौका खोलो !
सब मिल स्वर्ग-पाताल खंघालें !
शब्दों में सपने....
शाखों पर पत्ते डोल रहे हैं,
आपस में कुछ बोल रहे हैं,
फूलों पर तितली नहीं दीखती,
गर्म हवा है खूब चीखती !
मौसम में कैसे मधु-रस डालें ?
शब्दों में सपने...
चिनगारी-सी बुझी कामना,
एक मिटी, फिर नयी याचना,
कितने स्वप्न, सजीली आँखें,
सतरंगी किरणों-सी पांखें !
इन्द्रधनुष पर हम रंग डालें !
शब्दों में सपने...
आज धरा में है क्यों कम्पन,
काँप रहा क्यों घर का आँगन ?
अमराई में छिपा कौन है,
जाने क्यों कोकिला मौन है ?
हम साहस का बिगुल बजा लें !
शब्दों में सपने...
पौधों का एक बाग़ लगाएं,
उपवन में सुरभित फूल खिलाएं,
इस वसुधा को निर्मल कर दें,
प्रेम-प्रीति का नव स्वर भर दें !
नए छंद, नव-रस में गा लें !
शब्दों में सपने लिख डालें !!