एक शेर...
जश्न-ए-मुसलसल है, ये दौर चला दौर चले,
रुके न पाँव किसी ठौर, कहीं और चले !
(ब्लौगर मित्रों !
तीन वर्षों का नॉएडा-प्रवास (एन.सी.आर) समाप्त हुआ ! गृहस्वामिनी के स्थानान्तरण के साथ मैं भी वहाँ से विस्थापित होकर पुणे आ गया हूँ ! यह शेर इसी विस्थापन पर ! अगली पोस्ट पुणे से जायेगी !
अ.व.ओझा.)