शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

गाओ ऐसा गान...

गाओ ऐसा गान कि मन की व्यथा रिक्त हो जाए,

पीड़ित प्राण पखेरू को आनंद अमित हो जाए ॥ गाओ ऐसा गान....

पंजों में नाखून नहीं तो मन में संचित बल है,

आज भेड़ियों की मांदों में रक्षित सारा बल है ,

लगता है कि दिशाहीन होती जाती राहें हैं ,

अपने शौर्य पराक्रम की तो शक्तिहीन बाहें हैं ।

धर्म तराजू पर तौलेंगे हम एक दिन भुजबल को,

और पुकारेंगे अतीत से प्राप्त हुए संबल को,

विजय पराजय होगी किसकी देखा जाएगा ,

विष-दंत चुभोनेवाले को भी रोका जाएगा ।

आओ मुट्ठी में भर लें हम ये सारा आकाश,

फैले जग में फिर भारत का तेजस् पुंज-प्रकाश,

पंखविहीन हुए तो क्या है, हम उड़ सकते हैं,

नए क्षितिज और नयी दिशाएं भी गढ़ सकते हैं ।

दुर्बल को दे शक्ति नयी, हम नया समाज रचेंगे,

जाती पाती और भेद-भाव से निश्चय सभी बचेंगे,

विकल आर्तजन को देंगे हम एक नया विश्वास,

सपनों को हो जाएगा, सच होने का आभास ।

पीड़ा के परिदृश्य बदलते जीवन के साथी हैं,

आतंक घोर फैलानेवाले कायर हैं, पापी हैं,

चिंगारी हो जहाँ कहीं उसे समेट लाना है,
जन गण मन का संदेश अमर हमको फैलाना है ।।

त्राहिमाम करती जनता भी कभी मुक्त मन गाये,

गाओ ऐसा गान कि मन की व्यथा रिक्त हो जाए ।।

7 टिप्‍पणियां:

ज्योति सिंह ने कहा…

चिंगारी हो जहाँ कहीं उसे समेट लाना है,
जन गण मन का संदेश अमर हमको फैलाना है ।।
ati sundar rachana .

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

पंजों में नाखून नहीं तो मन में संचित बल है,
आज भेड़ियों की मांदों में रक्षित सारा बल है ,

लाऊं कहां से शब्द, जो मन के भाव सभी कह जाएं
ऐसी सुन्दरतम रचना पर टिप्पणी कर पाएं

के सी ने कहा…

ओझा जी मन आनंदित है प्रतीत हुआ कि हिंदी का स्वर्णयुग अब भी कहीं करवट बदल रहा है, किसी पंक्ति की क्या प्रशंसा करूँ सब उत्तम से भी आगे हैं .

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

gaan to hona hi chahiye esa jisame man ki vyathaa rikt ho jaaye/ gaan ka asal arth yahi he/ aapki rachnaye man ko baandhati he/ ekagra hone ka avasar pradaan karti he/ soch ko prabhavit karti he/ aour shayad tabhi rachna ka poora poora aanand prapt ho jata he/ sirf aanand ke liye nahi balki mujh jeso me josh bharane ke liye bhi/

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

पंजों में नाखून नहीं तो मन में संचित बल है,
आज भेड़ियों की मांदों में रक्षित सारा बल है ,

सिर्फ इन्ही पंक्तियों में ही नहीं , बल्कि अन्य पंक्तियों में भी झकझोरने का समुचित मदद है,
सुन्दर, प्रभावी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

Kavi Kulwant ने कहा…

bahut khoob... sadar naman

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

कवि भाई कुलवन्तजी,
' गाओ ऐसा गान...' कविता आपको प्रीतिकर लगी, आभारी हूँ. आपके ब्लॉग पर भी टहल आया, एक टिपण्णी भेजने की इच्छा थी, पोस्ट न कर सका. क्या आपने आने वाली प्रतिक्रियाओं के मार्ग पर कोई अवरोध लगा रखा है ? कुछ लिखूं तो वह आप तक पहुंचे कैसे, आपके ब्लॉग पर समझ न पाया. कंप्यूटरइय ज्ञान में कमज़ोर हूँ. दिशा-निर्देश दें. सप्रीत... आ.