शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

तीन शब्द-चित्र...

(१)
बंद कमरे में ...
खिड़की खुली ही रहने दीजिये--
क्योंकि
बंद कमरे में
कैद अंधेरों का
दम घुट जाएगा
और
कमरे पर
ह्त्या का
पाप होगा !
(२ )
इसी तरह...
कुछ तकलीफें
सरे मैदान भून दी गईं
और मैं तमाशबीन बना
सजदे में सर झुकाए रहा
वे चीखें सनसनाती सीटियों की तरह
श्रवन-रंध्रों में प्रविष्ट हुईं
और मेरा रोम-रोम सिहर उठा...
लेकिन, वे तकलीफें जान रही थीं
कि अब उन्हें ख़त्म होना है--
इसी तरह.... !
(३ )
हवा हो गई...
ओस की एक बूँद
आसमान से टपकी
नाज़ुक पौधे की टहनी का तन
उसने थाम लिया...
सूरज की नर्म धूप
जैसे ही फैली
ओस की बूँद कांप उठी,
थरथराई,
हवा में घुली
और
हवा हो गई... !!

7 टिप्‍पणियां:

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

ओस की एक बूँद
आसमान से टपकी
नाज़ुक पौधे की टहनी का तन
उसने थाम लिया...
सूरज की नर्म धूप
जैसे ही फैली
ओस की बूँद कांप उठी,
थरथराई,
हवा में घुली
और
हवा हो गई... !!

बेहतरीन भावव्यक्ति.
बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्ता
www.cmgupta.blogspot.com

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बेहतरीन रचना....बहुत ही उम्दा भाव अभिव्यक्ति.

vandana gupta ने कहा…

behtreen..........lajawaab abhivyakti.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत ही सुन्दर. आपके लेखन के इतने आयाम तो मुझे मालूम ही नहीं थे.हर बार कुछ नया.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ओझा जी!
बहुत कमाल के शब्द-चित्र प्रस्तुत किये हैं।
बधाई स्वीकार करें।

के सी ने कहा…

तीनों शब्द चित्र मन को भाए.

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

आप सबों का आभार मानता हूँ ! आ.