गुरुवार, 17 सितंबर 2009

अनाज की बात...

[बिहार के एक नर-संहार पर प्रतिक्रिया]

कैसी मासूमीयत से कह दी है तुमने राज़ की बात,
मेरे दिलो-दिमाग में घुमड़ती रही है आज की बात ।
मैंने समंदर को तो दरिया से मिलाना चाहा --
तुमने हौले-से कहा, है ये दूर- दराज़ की बात ॥


बेखौफ सन्नाटों में अब होने लगी सरताज की बात,
कितने मसरूफ हो, कर रहे तुम मेरे हर अल्फाज़ की बात ।
मैंने तो ताल्खियों को अपना इलाही समझा --
तुमने क्यों छेड़ दी मुझसे मेरे हमराज़ की बात॥

इबादत में जो झुकने लगे होने लगी समाज की बात,
शैतानियत का खल्क देख तुमने की ज़र्रानवाज़ की बात ।
मेरी गूंगी पर ठहरते नहीं हैं लफ्ज़ दोस्त--
मैं बड़ा बेजार था, क्या होगी मेरी आवाज़ की बात ॥

इन इबारतों में कहाँ पिन्हा है लिहाज़ की बात,
बड़े मुब्तिला हो करते रहे तुम मुल्क पे नाज़ की बात ।
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥

16 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

ओझा जी को अभिवादन,
उस अलभ्य दर्शन दुर्लभ ने आखिरी कड़ी तक बहुत संजीदा कर दिया था फिर जिन साधनों से बात होती थी वे नाकारा हो गए. कल से उनके लौट आने के बाद रंगत में रौनक लौट आई है तो आप ही को सबसे पहले लिख रहा हूँ कि रचना अपने सामाजिक सरोकारों को निभाते हुए भी दिल को छू जा रही है.
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आपकी रचना के विषय में मैं क्या कह सकता हूँ, इतना ना मुझ में साहस है ना मेरा समर्थ | बस इतना जानता हूँ आपकी बात दिल तक जाती है ! और बचपन से सुनता आया हूँ दिल से कही हुयी बात ही दिल तक जाती है |
बहुत बहुत आभार व शुभकामनाएं |

ज्योति सिंह ने कहा…

kishore ji w shivam ji ne bahut hi umda aur uchit baate kahi ,mera bhi kuchh aesa hi sochana hai itni behtrin rachana ke samne aadmi sochne par vivash ho jata hai ,bolne ko to soch hi nahi pata .

ओम आर्य ने कहा…

ओझा जी नमस्कार

आपके लेखन से हमे बहुत कुछ सिखने को मिलता है ,आप जो कुछ भी लिखते है वह समाजिक सरोकार से परिपुर्ण होता है ........जिसमे सब कुछ समाहित रहता है ........और यह बात मुझे भी लगता है कि दिल से निकली हुई बात अवश्य ही दिल तक पहुंती है ......बहुत बहुत आभार

ओम आर्य

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"बेखौफ सन्नाटों में अब होने लगी सरताज की बात,
कितने मसरूफ हो, कर रहे तुम मेरे हर अल्फाज़ की बात ।
मैंने तो ताल्खियों को अपना इलाही समझा --
तुमने क्यों छेड़ दी मुझसे मेरे हमराज़ की बात॥"

वाह..!
बड़ी मासूमियत से आपने धारदार बाते कह दीं हैं।
आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ ओझा जी!

sanjay vyas ने कहा…

सादर वंदन.
बीच में कुछ दिन कम्प्युटर ठीक नहीं चल रहा था.पर अब कुछ दिनों से ठीक है.रचना पर देरी से आने की मुआफी चाहूँगा. आपकी पंक्तियों ने जीवन पर्यंत अन्न की बात ही सोच पाने वाले लोगों की पीडा को मार्मिक स्वर दिया है.
आभार.

अपूर्व ने कहा…

ओझा जी आपकी एक और भावपूर्ण और सामयिक रचना पढ़ने को मिली..हर रचना से आपका एक अलग ही व्यक्तित्व सामने आता है..प्रिज्म से रोशनी की तरह
आपकी इन पंक्तियों से इत्तफ़ाक़ रखता हूँ
मेरी गूंगी पर ठहरते नहीं हैं लफ्ज़ दोस्त--
मैं बड़ा बेजार था, क्या होगी मेरी आवाज़ की बात ॥

और इन पंक्तियों का गूँगा सच..काश हमारा पूँजीवादी बहरा वक्त समझ पाता
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥
१०० कविताऎं क़ुर्बान हैं इस पंक्ति की यथार्थ पर.
आभार

Satya Vyas ने कहा…

मैंने समंदर को तो दरिया से मिलाना चाहा --
तुमने हौले-से कहा, है ये दूर- दराज़ की बात ॥


bahut umda
bejod sahib

vevna o ki kvyatmak prastuti.

satya vyas.

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

आनन्दवर्धन जी,

जिस आखिरी कड़ी की मैं बात करने जा रहा हूँ वह शायद मेरी पढ़ी हुई श्रेष्ठ नज्मों में से एक होगी :-

इन इबारतों में कहाँ पिन्हा है लिहाज़ की बात,
बड़े मुब्तिला हो करते रहे तुम मुल्क पे नाज़ की बात ।
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥

इसके आगे ना तो कुछ और कहना बचता है और ना ही कुछ सुनना, क्या कहा है!!!!

सादर,

समधर्मा


मुकेश कुमार तिवारी

Ishwar ने कहा…

नमस्कार,
आपकी लेखनी को सर झुका कर सलाम
इस से ज्यादा कुछ कहने की मेरी जुर्रत नही हो सकती, देरी से आने के लिये माफ़ी दे । इन्टरनेट मे समस्या हे कुछ दिनो से अपनी पोस्ट तो मेने शेड्युल कर रखी है,आज भी साईबर केफ़े से नेट पर हु । होसला अफ़्जाई का शुक्रिया ।

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

किशोरजी, शिवम् जी, ज्योतिजी, ओम भाई, शास्त्रीजी, व्यासजी, अपूर्वजी, सत्यजी, तिवारीजी, इश्वरजी,
आप सबों की हार्दिक किन्तु आत्यंतिक प्रशंसा का शुक्रिया किन शब्दों में करूँ, समझ नहीं पाता ! लेखन में शुद्धता और इमानदारी को पहली शर्त माननेवाला मैं इसी कोशिश में रहता हूँ कि जो कुछ लिखूं, वह शुद्ध हो और इमानदारी से लिखा गया हो ! 'इमानदारी' अपने व्यापक अर्थ में... !
मेरी इसी कोशिश के प्रतिफल के रूप में कोई रचना आपलोगों को पसंद आयी तो ये मेरी खुशनसीबी है, आप प्रबुद्ध जनों के बीच यह रचना प्रसंषित हुई, यह सच में मेरे लिए सौभाग्य की बात है ! आभारी हूँ !!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

इन इबारतों में कहाँ पिन्हा है लिहाज़ की बात,
बड़े मुब्तिला हो करते रहे तुम मुल्क पे नाज़ की बात ।
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥
रोमांचित करने वाली पंक्तियां...

Unknown ने कहा…

नमस्कार!

इन इबारतों में कहाँ पिन्हा है लिहाज़ की बात,
बड़े मुब्तिला हो करते रहे तुम मुल्क पे नाज़ की बात ।
सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥...दिल से निकली हुई बात अवश्य ही दिल तक पहुंती है .....

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

वंदनाजी, साधनाजी,
'अनाज की पीडा' पहचानने के लिए आप दोनों का शुक्रिया, आभार !!

Naveen Tyagi ने कहा…

मैंने समंदर को तो दरिया से मिलाना चाहा --
तुमने हौले-से कहा, है ये दूर- दराज़ की बात

bahut sundar

Unknown ने कहा…

सरे-शाम खलिहानों में जो मारे गए यारों--
वो कमनसीब तो ताज़िन्दगी करते रहे अनाज की बात ॥
wah
aanandji
wah
bahut hi sanjeedgio se lkhi ye gajal bahut hi vajandar jiska her sher paya ka sher ho gaya hai..aapko dhanyawad ki aapne hume achi gazal padhne ko di...