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[ऋतज के पहले जन्म-दिन पर]
तुम आए, नवजीवन आया !
मेरे इस सूने जीवन में, हास-हुलास समाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दीपमालिका सजी हुई थी,
पलकें सबकी बिछी हुई थीं,
पूजा की थाली में द्रुम-दल ,
रोली-कुमकुम, अक्षत-चंदन,
ग्रीवा नत, सिर झुका हुआ था,
पूजन फिर भी रुका हुआ था !
आतुर प्राण लिए हम आकुल,
आ जाने को तुम भी व्याकुल;
आने में तुमने देर बहुत की--
थी प्रभु की ऐसी ही माया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दूर देश दक्षिण के वन में,
हुलसित हुआ हृदय कानन में,
कुसुमादपि कोमल एक वृंत पर
दूर्वा-दल के बीच खिला फिर--
प्रीति-पराग सुवासित फूल !
हुआ सचेतन तन-मन सबका,
जनक-जननि भी अपनी पीड़ा गए भूल !
विधि को भाग्य बदलना आया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दूरभाष के लंबे-पतले तार पकड़कर,
आए-गए बहुत संवाद
अमित बधाई हम सब को,
तुमको आशीर्वाद !
नाना-नानी, मौसी-चाचा,
सब कहते तू मेरा राजा;
लेकिन तुझको श्रांत-क्लांत--
माता का ही आँचल भाता ।
रहा विहँसता नभ में चन्दा
और यहाँ तेरी मुख-मुद्रा--
देख हमारे हृदय-कमल में
आनंद अमित, उल्लास समाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
रात-रात भर नानी करतीं
बहुत-बहुत-सा प्यार,
दूरभाष पर मौसी देतीं
मीठी-सी पुचकार !
मौसीजी ने छूकर तेरे
कोमल-कोमल गाल,
आनंदित हो चूम लिया है
तेरा उन्नत भाल !
चित्र तुम्हारे ले चाचाजी
चले गए निज ग्राम,
जहाँ तुम्हारे दादी-दादा
करते हैं विश्राम !
उसी गॉंव में रहती जो--
बहुत वृद्ध परदादी,
पाकर यह संवाद आज,
उनका भी हृदय जुड़ाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
मेरी बेटी, तेरी माता ने
सहकर कष्ट अनेक,
तुझको जीवन दिया, रहा फिर
उसे न कोई क्लेश ।
पिता रहे पल-पल के संगी
तन-मन-प्राण लगाया ।
पाकर हुए निहाल तुझे
अन्तर-मन उनका भी हर्षाया ।
दोनों परिवारों पर यह तो--
प्रभु की कृपा हुई है ।
परनाना और परदादा की
आत्मा तृप्त हुई है !
पूर्वज दें आशीष, सभी दें--
तुझको स्नेहिल छाया !
बुद्धि और बल से निखरे फिर
तेरी उज्ज्वल काया !!
तू प्रकाश की प्रथम किरण है,
नव-विहान बन आया !
तुम आए, नवजीवन आया !! ...
मेरे इस सूने जीवन में, हास-हुलास समाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दीपमालिका सजी हुई थी,
पलकें सबकी बिछी हुई थीं,
पूजा की थाली में द्रुम-दल ,
रोली-कुमकुम, अक्षत-चंदन,
ग्रीवा नत, सिर झुका हुआ था,
पूजन फिर भी रुका हुआ था !
आतुर प्राण लिए हम आकुल,
आ जाने को तुम भी व्याकुल;
आने में तुमने देर बहुत की--
थी प्रभु की ऐसी ही माया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दूर देश दक्षिण के वन में,
हुलसित हुआ हृदय कानन में,
कुसुमादपि कोमल एक वृंत पर
दूर्वा-दल के बीच खिला फिर--
प्रीति-पराग सुवासित फूल !
हुआ सचेतन तन-मन सबका,
जनक-जननि भी अपनी पीड़ा गए भूल !
विधि को भाग्य बदलना आया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दूरभाष के लंबे-पतले तार पकड़कर,
आए-गए बहुत संवाद
अमित बधाई हम सब को,
तुमको आशीर्वाद !
नाना-नानी, मौसी-चाचा,
सब कहते तू मेरा राजा;
लेकिन तुझको श्रांत-क्लांत--
माता का ही आँचल भाता ।
रहा विहँसता नभ में चन्दा
और यहाँ तेरी मुख-मुद्रा--
देख हमारे हृदय-कमल में
आनंद अमित, उल्लास समाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
रात-रात भर नानी करतीं
बहुत-बहुत-सा प्यार,
दूरभाष पर मौसी देतीं
मीठी-सी पुचकार !
मौसीजी ने छूकर तेरे
कोमल-कोमल गाल,
आनंदित हो चूम लिया है
तेरा उन्नत भाल !
चित्र तुम्हारे ले चाचाजी
चले गए निज ग्राम,
जहाँ तुम्हारे दादी-दादा
करते हैं विश्राम !
उसी गॉंव में रहती जो--
बहुत वृद्ध परदादी,
पाकर यह संवाद आज,
उनका भी हृदय जुड़ाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
मेरी बेटी, तेरी माता ने
सहकर कष्ट अनेक,
तुझको जीवन दिया, रहा फिर
उसे न कोई क्लेश ।
पिता रहे पल-पल के संगी
तन-मन-प्राण लगाया ।
पाकर हुए निहाल तुझे
अन्तर-मन उनका भी हर्षाया ।
दोनों परिवारों पर यह तो--
प्रभु की कृपा हुई है ।
परनाना और परदादा की
आत्मा तृप्त हुई है !
पूर्वज दें आशीष, सभी दें--
तुझको स्नेहिल छाया !
बुद्धि और बल से निखरे फिर
तेरी उज्ज्वल काया !!
तू प्रकाश की प्रथम किरण है,
नव-विहान बन आया !
तुम आए, नवजीवन आया !! ...
[मित्रों ! आज दीपावली है। लेकिन मेरा मन एक वर्ष पूर्व व्यतीत हुई दीपावली की स्मृतियों में खोया-खोया है। पिछली दीपावली (२८-१०-२००८) की शाम ३-४० पर मेरी ज्येष्ठ कन्या ने पुत्र को जन्म दिया था और अचानक मैंने जाना था कि मैं 'नानाजी' बन गया हूँ। अपने दौहित्र को मैंने 'ऋतज' नाम दिया है। 'ऋतज' के जन्म पर मैंने एक (निजी) कविता लिखी थी। आज उसी कविता को आपके सम्मुख रख रहा हूँ, इस आशा से कि आप भी एक वर्ष पहले की मेरी मनस्थितियों और भावनाओं के साझीदार बनकर प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। आग्रह है, इस कविता में काव्य-तत्त्व नहीं, केवल भाव देखने की कृपा करें। 'ऋतज' आज एक वर्ष के हो गए हैं, उन्हें पहले जन्मदिन पर आशीष और आप सबों को दीपावली की अशेष शुभकामनाएं ! --आ०]
19 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया उपहार दिया आपने नन्हे 'ऋतज' को !
'ऋतज' को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनाएं सहित ढेरो प्यार व आर्शीवाद !
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
कितना अद्भुत होता है एक रंग में कई और रंगों का मिल जाना एक ख़ुशी के अवसर पर दूनी ख़ुशी महसूस होना, नाना जी को ढेर सारी बधाइयां और नन्हे को स्नेह भरा आर्शीवाद.
ऋतज के पहले जन्मदिन पर मेरी ओर से उसके नाना , और मौसी विधु की ओर से बहुत-बहुत बधाइयां.
यह दिया है ज्ञान का, जलता रहेगा।
युग सदा विज्ञान का, चलता रहेगा।।
रोशनी से इस धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
ऋतज आपको पहला जन्म दिन की बधाइयाँ
और मेरा स्नेह भरा आर्शीवाद भी .......
hamari taraf se bhi dipawali ke shubh avasar par ritaj ko uski janamdin ki dhero badhaiyaan .baar -baar ye din aaye mahake aangan har baar ,tum jiyo hazaro saal .
कविता और नाम दोनों सुन्दर हैं । सस्नेह बधाई !
'ऋतज' को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयां व शुभकामनाएं सहित ढेरो प्यार व आर्शीवाद !कविता तो अपनेआप मे बेमिशाल है /बहुत ही प्यारा उपहार है/आभार
ओम
लेकिन तुझको श्रांत-क्लांत--
माता का ही आँचल भाता ।
रहा विहँसता नभ में चन्दा
और यहाँ तेरी मुख-मुद्रा--
देख हमारे हृदय-कमल में
आनंद अमित, उल्लास समाया !
तुम आए, नवजीवन आया !!
दिल को छू लेने वाली मनोहर, मनभावन पंक्तियाँ.
बधाई.
ऋतज के पहले जन्म-दिन पर हमारी भी हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अब डाली आपने अपने मूड के मुताबिक तस्वीर(अपने प्रोफ़ाइल मे)अच्छी फोटो है.
आनंद जी वो बच्चा क्यों न नसीबों वाला होगा जिसे इतना प्यार करने वाला नाना मिला होगा .....बच्चे के जन्म पर लिखी इतनी सुंदर कविता पहली बार पढ़ी ....कई ख्याल आये और गए ....एक जननी जो जीवन और मृत्यु के बीच झूलती हुई पुरुष को जन्म देती है एक दिन वही पुरुष के हाथों प्रताड़ित होती है ....बस इस बच्चे को ऐसा बनने मत दीजियेगा .....!!
'ऋतज' को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयां
जब सोचने बैठी कि दिवाली पर क्या लिखू तो वही भाव आये ....!!
पहली तस्वीर में यायावर दीखते थे जो मेकडोनाल्ड के आगे बैठा है
इस तस्वीर को देख कर कुछ समझ नहीं आ रहा, वैसे वंदना जी ये हैं कौन ?
अप्रतिम ओझा जी या कोई संपादक...
किशोर जी, मुझे तो ये अप्रतिम ओझा जी लगते हैं..
किशोरजी, वंदनाजी,
बहुत पहले विश्वनाथ प्रसाद सिंह की एक क्षणिका पढ़ी थी--शीर्षक था-- 'लिफाफा' :
''मजमून तुम्हारा और पता उनका,
दोनों के बीच मैं ही फाडा जाऊंगा !''
रहम कीजिये मेरे आका !
सप्रीत --आ.
ऋतज को स्नेहाशीर्वाद देने के लिए आप सबों का बहुत-बहुत आभारी हूँ ! --आ.
आपके चैलेन्ज़ का जवाब हाज़िर है-
न ज़रूरत है रहम की,
और न करम की,
आपकी रचनाएं है
खुद "अप्रतिम" सी
आपके चैलेन्ज़ का जवाब हाज़िर है-
न ज़रूरत है रहम की,
और न करम की,
आपकी रचनाएं है
खुद "अप्रतिम" सी.
ये तो गजब हुआ पहाड़ ने चींटियों को ललकारा है
नाना जी से टकराना न बाबा न ...
आप ही कुछ कीजिये वंदना जी मेरे तो बूते की बात नहीं !
वंदनाजी,
आपके दहले से मैं निरुत्तर हो गया !
किशोरजी,
मुझ अकिंचन-अपदार्थ को पहाड़ न कहिये प्रियवर !
आप दोनों का आभारी हूँ !!
सप्रीत--आ.
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