सोमवार, 1 नवंबर 2010

दिन ढला नहीं था, रात हुई...

पल में विधि ने सब बदल दिया,
ये कैसी सौगात हुई ?
दिन ढला नहीं था, रात हुई !

हर क्षण जो अपने पास रहे,
सब चले गए, जो साथ रहे,
पलकों पर ठहरे हुए ज्वार की
रह-रहकर बरसात हुई ! दिन ढला नहीं था...

कल का सूरज जब आएगा,
किरणें सतरंगी लाएगा,
धूप चढ़ेगी, फैलेगी--
वह डाल-डाल औ' पात हुई ! दिन ढला नहीं था...

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई ! दिन ढला नहीं था...

साहस के होते पाँव बहुत,
पथ में मिल जाती छाँव बहुत,
राह मिलेगी चलने पर,
यह बात अबूझी ज्ञात हुई ! दिन ढला नहीं था...

13 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

क्या बात है भैया !
पल में विधि ने सब बदल दिया,
ये कैसी सौगात हुई ?
दिन ढला नहीं था, रात हुई !

ये आरंभिक पंक्तियाँ ही इतनी ज़बरदस्त हैं ki आगे बढ़ने से पहले मन यहीं अटक गया ,


हर क्षण जो अपने पास रहे,
सब चले गए, जो साथ रहे,
पलकों पर ठहरे हुए ज्वार की
रह-रहकर बरसात हुई ! दिन ढला नहीं था...
सच अंतर्मन तक भिगा गईं ये पंक्तियाँ

साहस के होते पाँव बहुत,
पथ में मिल जाती छाँव बहुत,
राह मिलेगी चलने पर,
यह बात अबूझी ज्ञात हुई ! दिन ढला नहीं था..
बहुत सुन्दर ! आप की आशावादिता को दर्शाते हुए ये शब्द कविता को पूर्णता प्रदान करते हैं
बधाई ,आभार

के सी ने कहा…

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई ! दिन ढला नहीं था...

मनभावन. विविध रसों के निष्पादन से चकित कर देने वाली रचना

बेनामी ने कहा…

इतने बेहतरीन अलफ़ाज़...बहुत ही सुन्दर...
बड़े दिन हुए थे ऐसी खूबसूरत रचना पढ़े हुए... थोडा मोड़ा मैं भी लिखता हूँ ..आकार मार्गदर्शन करें..
कभी कभी....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई !

बहुत ही सुन्दर लिखा है.

कविता रावत ने कहा…

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई ! दिन ढला नहीं था...
...bahut sundar bhavpurn rachna.. aabhar

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई !
दिन ढला नहीं था...
--
बहुत सुन्दर रचना है!
--
हर एक छंद में नया बिम्ब समाया है!

ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

जब टूटे तारे चमकेंगे,
अम्बर में छटा बिखेरेंगे,
चकित नयन सब देखेंगे--
यह मन की मन से बात हुई ! दिन ढला नहीं था
कमाल की पंक्तियां... ये मन से मन की बात हुई.. बहुत सुन्दर.
दीपावली की अनंत शुभकामनाएं, आशीर्वाद की आकांक्षी हूं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत भावभीनी रचना ..

अनुपमा पाठक ने कहा…

दिन ढला नहीं था, रात हुई !
dard ki sukshm sundar abhivyakti!!!
regards,

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

आप सब को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
हम आप सब के मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली की कामना करते हैं.

Dorothy ने कहा…

बेहद गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

monali ने कहा…

Na jane khud me hi kya chhipaye hai ye kavita...thodi si nasamajh hu to keh nahi sakti ki iski gehanata aur gehraayi ko samajh bhi payi ya nahi..magar behad pasand aayi :)

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

आप सबों का आभार !
--आ.